अनर्थ निवृत्ति के ऊपर मेरी अनुभूति।

vedashindi
नेहा!
25 Jan 2019

मुझे लगता है कि जब हम अपने हृदय से सूक्ष्म स्तर के अनर्थो, अनचाही चीज़ों को हटाने का प्रयास करते हैं ताकि हम कृष्ण भावनमृत में बिना किसी बाधा के प्रगति कर सकें। भले ही हम अपनी क्षमता (अधिकार) के अनुसार उन अनर्थो को हटाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।

हरे कृष्ण महामंत्र की शक्ति।

लेकिन मुझे लगता है कि अपनी निजी ताकत से उन अनर्थो को हटाना वास्तव में एक कठिन काम है। आत्मा भगवान का अंश है और प्रकृति में शुद्ध होने के साथ-साथ सत्चिदानंद भी हैं। लेकिन आत्मा इन सूक्ष्म स्तर के अनर्थों से इस तरह से ढँकी हुई है कि हम स्वयं की वास्तविक स्थिति को देखने में असमर्थ हैं।

गौड़ीय वैष्णवों के लिए मकर संक्रांति का दिवस विशेष क्यूँ है?

जिस तरह कोहरे के मौसम में सूर्य की किरणें कोहरे से ढक जाती है उसी तरह ये अनचाहे अनर्थ आत्मा को ढक लेते हैं और हम अपनी असली पहचान भूल जाते हैं। जब हम उन अनर्थो खेलते हैं तो हम गुरु और कृष्ण की दया को ठीक से नहीं देखते हैं। वैष्णवों, गुरुओं और कृष्ण की अहैतुकीं कृपा के द्वारा ही उन अनर्थो से पार कर पाना संभव है।


 “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। 
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे”।।

राजेश पाण्डेय, पीएच॰डी॰ (रामानन्द दास)!

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