एक सच्चे आध्यात्मिक गुरु की क्या पहचान है?

राजेश पाण्डेय, पीएच॰डी॰ !
9 Jun 2019
एक सच्चे आध्यात्मिक गुरु की क्या पहचान है?
प्रश्न - किस तरह आत्म साक्षात्कार प्राप्त आध्यात्मिक गुरु को पहचाने और आध्यात्मिक दीक्षा प्राप्ति के लिए उनसे कैसे आग्रह किया जाए? भगवद्गीता में कहा गया है की मनुष्य को ऐसे प्रामाणिक गुरु पास जाना चाहिए, जिसने सत्य को देखा है। परंतु किस तरह ऐसे व्यक्ति को पहचाना जाए जिसने सत्य को देखा है? अब उस व्यक्ति के लिए यह कैसे सम्भव है कि वो कैसे पहचाने कि किसने सत्य को देखा है?
श्रील रोमपाद स्वामी द्वारा उत्तर- प्रामाणिक गुरु का सबसे प्रथम लक्षण यह है कि वह स्वयं प्रामाणिक गुरु-शिष्य परंपरा से संबंधित होता है, जो कि स्वयं श्री भगवान से प्रारंभ हो रही है। उसे आध्यात्मिक गुरु की सेवा संपादित करने के लिए मान्यता भी प्राप्त होना चाहिए।
बद्ध जीव की बुद्धि में खोट होते हैं।एक प्रामाणिक गुरु कभी भी वह शिक्षा नहीं देते जो उनके द्वारा अविष्कृत त्रुटिपूर्ण हो अपितु वे बगैर किसी बदलाव या भटकाव के यथावत वही शिक्षा देते हैं जो शास्त्रों में और भगवान के द्वारा बताई गई है। केवल इसी प्रकार की शिक्षाएं त्रुटि रहित होती हैं और एक प्रामाणिक गुरु यही शिक्षा प्रदान करते हैं।
जब श्रील प्रभुपाद से यह पूछा गया था की यह कैसे पहचाने की भगवद गीता का कौनसा अनुवाद पढ़ने के लिए सबसे अच्छा है तो श्रील प्रभुपाद ने उत्तर दिया था "आपको क्या लगता है कौन भगवद गीता को ज्यादा अच्छे से बता पाएगा वह व्यक्ति जो शत-प्रतिशत भगवान कृष्ण की सेवा में परायण हैं, जो उनके बारे में हमेशा चर्चा करते हैं और उनका गुणगान करते हैं या ऐसा व्यक्ति जो भगवद गीता के ऊपर 2 घंटे का प्रवचन देते हैं पर कभी भी भगवान कृष्ण के नाम का भी नहीं लेते?" इसीलिए जो कृष्ण के विज्ञान को समझते हैं, और उनकी सेवा में पूरी तरह से परायण हैं वे ही सर्वश्रेष्ठ गुरु हैं।
सबसे मुख्य बात यह है कि वे कभी भी यह दावा नहीं करते कि वे स्वयं भगवान हैं। वे स्वयं शास्त्रो का दृढ़ता से पालन करते हैं और अपने अनुयायियों को भौतिक आसक्तियों से हटाकर मुक्ति के मार्ग में मार्गदर्शन करते हैं।
आप अपने प्रश्न में मुख्य रूप से एक स्वरूप सिद्ध व्यक्ति के लक्षणों के बारे में पूछ रहे हैं। इस प्रश्न का उत्तर भगवद्गीता एवं श्रीमद्भागवत में दिया गया है। आप भगवद्गीता २.५४-५८ ,७.२८ एवं १४.२१-२६ एवं श्रीमद्भागवत ४.२२.२०-२४ एवं २७-२८ में इन लक्षणों के बारे में पढ़ सकते हैं। इसी प्रकार से श्रीमद्भागवताम में अन्य स्थानो पर भी विवरण है।
आपने यह भी पूछा कि दीक्षा के लिए आध्यात्मिक गुरु से कैसे संपर्क करें। भगवद-गीता (4.34) में आध्यात्मिक गुरु के पास आने की विधि के बारे में बहुत स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है। उसे विनम्रतापूर्वक समर्पण करना चाहिए, विनितभाव से सेवा करनी चाहिए, और आध्यात्मिक विषयों के बारे में पूछताछ करनी चाहिए। विनम्रतापूर्वक पूछताछ और विनीतभाव से सेवा द्वारा व्यक्ति किसी एक आध्यात्मिक गुरु के साथ एक विशेष सार्थक संबंध विकसित कर सकता है, और इसी प्रक्रिया से व्यक्ति आध्यात्मिक दीक्षा प्राप्त करने के लिए धीरे-धीरे पात्र बन सकता है। (इस विषय पर आगे के संदर्भों के लिए, BBT द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक है, "आध्यात्मिक गुरु और शिष्य" जो आध्यात्मिक गुरु और शिष्य के गुणों और कर्तव्यों के बारे में बहुत विस्तार से वर्णन करता है।)
सीधे ही व्यक्ति को आध्यात्मिक गुरु से शिष्य के रूप में स्वीकार करने का अनुरोध करना होगा। रिश्ते में कुछ आपसी समझ और विश्वास स्थापित होने के बाद यह प्रत्यक्ष अनुरोध करना श्रेयस्कर है।
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