गोबरैला से सीख। Gobaraila se sikh

राजेश पाण्डेय, पीएच॰डी॰ !
17 Sep 2020
गोबर में एक कीड़ा पाया जाता है, जिसे गोबरैला कहते हैं। उसे ताजे गोबर की गन्ध बहुत भाती है! और वह सुबह से गोबर की तलाश में लगा रहता है और सारा दिन उसे जहां कहीं गोबर मिल जाता है, वहीं उसका गोला बनाना शुरू कर देता है। शाम तक वह एक बड़ा सा गोला बना लेता है। फिर उस गोले को ढ़केलते हुए अपने बिल तक ले जाता है। लेकिन बिल पर पहुंच कर उसे पता चलता है कि उसने इतनी मेहनत किया कि गोला बहुत ही बड़ा बन गया मगर उसके बिल का द्वार उस गोबर के गोले से बहुत छोटा है। बहुत परिश्रम और कोशिशों के बाद भी वह उस गोले को बिल के अंदर नहीं ले जा पाता, और उसे वहीं पर छोड़कर बिल में चला जाता है।
इस गोबरैले के ही जैसा हाल हम सभी बद्ध मनुष्यों का भी है। पूरी जिंदगी हम यहाँ तक कि करते दम तक दुनिया भर का माल जमा करने में अथवा इन्द्रिय तृप्ति में लगे रहते हैं। और जब अंत समय आता है, तो पता चलता है कि ये सब तो साथ नहीं ले जा सकते, और तब हम उस जीवन भर की कमाई को बड़ी हसरत से देखते हुए इस संसार से विदा हो जाते हैं।। पुण्य और पाप कर्म दोनो ही हमको इस भौतिक जगत में बाँधते हैं और जो कर्म के प्रभाव को समझता है, वह धर्म को भी समझता है। संपत्ति के उत्तराधिकारी एक या अनेक हो सकते हैं, किंतु कर्मों के उत्तराधिकारी केवल और केवल हम स्वयं ही होते हैं।
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इसलिए हमेशा ही उसकी खोज में रहे जो हमारे साथ जाना है, उसे हासिल करने में ही समझदारी है जिसके लिए मनुष्य जीवन मिला है। जब हम प्रामाणिक गुरु/भक्त, साधु शास्त्र के निर्देशन में रहकर अति तीव्रता से भगवान विष्णु/कृष्ण की भक्ति करेंगे, तो हम कर्मों के बन्धन अर्थात् इस भौतिक जगत के जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर अपने शाश्वत घर अर्थात् भगवद्धाम को वापस जा सकते हैं।
“परम विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम” कलियुग में यह संकीर्तन आंदोलन (भगवान के नाम का जप और कीर्तन) मानवता के लिए परम वरदान है। इसीलिए पूर्ण निष्ठा और विश्वास से सदैव भगवान के नाम का जप करिए और ख़ुश रहिए।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। 😇🙏😇
हरे कृष्ण
रामानन्द दास (राजेश कुमार पाण्डेय, पीएच॰डी॰)
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