हमारी गुरु-शिष्य परम्परा शिक्षा परम्परा है

Vijay!
6 Jun 2019
प्रश्न : मैं सोचता था कि सम्प्रदाय केवल उन लोगों के लिए प्रयुक्त होता है जो गुरु-शिष्य परम्परा में दीक्षित हैं (भगवद्-गीता यथारूप के अनुसार)। उदाहरणार्थ, वर्तमान में मैं इस्कॉन सम्प्रदाय में दीक्षित नहीं हूँ। लेकिन मैं नहीं सोचता कि यह सही होगा यदि मैं सम्प्रदाय का हिस्सा होने का दावा करूँ। मेरा प्रश्न इस तथ्य के कारण उठता है कि यद्यपि श्रील भक्तिविनोद ठाकुर, गौर किशोरदास बाबाजी महाराज के दीक्षा गुरु नहीं हैं फिर भी वे हमारे सम्प्रदाय में आते है। वास्तव में, गौर किशोरदास बाबाजी महाराज, श्रील भागवत दास बाबाजी के शिष्य है जो कि श्रील जगन्नाथ दास बाबाजी (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर के गुरु महाराज) के शिष्य है?
रोमपाद स्वामी द्वारा उत्तर: किसी व्यक्ति को सम्प्रदाय का हिस्सा तब समझा जा सकता है, जब वह सम्प्रदाय के अनुसार निर्देशों को प्राप्त करता है तथा श्रद्धापूर्वक उन निर्देशों का पालन करता है। सम्प्रदाय में दीक्षा का मतलब उस सम्प्रदाय के निर्देशों तथा शिक्षाओं की स्वीकृति को एक औपचारिक रूप देना है। खास तौर पर हमारी गुरु-शिष्य परम्परा में, परम्परा का पता किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त प्राथमिक निर्देश के स्रोत से लगता है। इसी बात को दूसरे तरीके से इस प्रकार कहा जा सकता है कि हमारी गुरु-शिष्य परम्परा प्रणाली शिक्षा प्रणाली है, दीक्षा प्रणाली नहीं। यदि आप श्रील प्रभुपाद की शिक्षाओं से निर्देश प्राप्त करते हैं तो निश्चित रूप से आपको सम्प्रदाय का हिस्सा माना जा सकता है। वे आपके प्राथमिक शिक्षा गुरु हैं और दूसरे लोग भी आपको आपकी आध्यात्मिक उन्नति में भली-भांति मार्गदर्शन कर सकते हैं | इसी को सम्प्रदाय का हिस्सा होना कहते हैं। किसी एक समय पर, दीक्षा आपको औपचारिक रूप से गुरु-शिष्य परम्परा से जोड़ेगी, लेकिन वर्तमान में आप श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों तथा शिक्षाओं से प्राथमिक निर्देश लेकर, भली-भांति सम्प्रदाय का हिस्सा बन सकते हैं। (नीति-संग्रह १.४:)
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