जब हम अत्यधिक कष्ट में होते हैं तो हमारी श्रद्धा भगवान पर से कम क्यों हो जाती है?

आदित्य!
18 Jun 2019
प्रश्न: जब हम अत्यधिक कष्ट में होते हैं , तो हमारी श्रद्धा भगवान पर से कम क्यों हो जाती है? ऐसे समय पर हम किस तरह भगवान पर पूर्ण विश्वास रखें?
श्रील रोमपाद स्वामी द्वारा उत्तर: भगवत गीता (२:४१) में श्रील प्रभुपाद श्रद्धा की परिभाषा इस तरह देते हैं - किसी दिव्य वस्तु पर अटूट विश्वास। कृष्ण हमारी इन्द्रियों व बुद्धि से परे हैं। इसलिए श्रद्धा मतलब पूरी भावनाओ के साथ आश्रित होना व पूर्ण विश्वास होना की कृष्ण की शरण लेने पर वह अवश्य ही मेरी रक्षा करेंगे, हालांकि कोई यह ठीक से समझ नहीं सकता की भगवान किस तरह से रक्षा करने वाले है , इसलिए यह दिव्य कहलाता है।
हमारी श्रद्धा की शक्ति की वास्तविक परीक्षा तभी होती है जब कुछ बाधा आती है। वास्तविकता में,क्या ऐसा नहीं है, कि हमारी श्रद्धा का कोई अर्थ नहीं होगा, यदि सब कुछ हमारे अनुसार चले। इसलिए कठिनाइयां एक प्रकार से छुपी हुई कृपा है जो हमको दिखाती है कि हमारी श्रद्धा कहां कमजोर है और हमें उसे मजबूत बनाने का अवसर प्रदान करती है।
जब हम कृष्ण को भूल जाते हैं या फिर जब हम कृष्ण का हाथ किसी घटना के पीछे नहीं देख पाते तब हमारी श्रद्धा डगमगाने लगती हैं। जब हम भगवान की शरण कठिनाइयों के मध्य भी लेते हैं तब हम यह देखते हैं कृष्ण किस प्रकार से हर पग पर हमारी रक्षा करते हैं-यह हमारी श्रद्धा को कई गुना बढ़ाता है और उसे और भी दृढ़ करता है। यही चीज हम द्रोपदी और कुंती जैसे भक्तों के जीवन में भी देखते हैं, इसलिए कुंती प्रार्थना करती हैं कि ये कठिनाइयां फिर से हमारे जीवन में आए (श्रीमद भागवतम १.८.२४) हमारी श्रद्धा कमजोर होने का दूसरा कारण यह है कि हम भौतिक आश्रय टूढते हैं।
श्रील भक्ति विनोद ठाकुर एक बद्ध जीव के भाव में प्रार्थना करते हैं कि हे भगवान, मैं इस भवसागर में गिर गया हूं और आपके चरण कमल रुपी अमोघ नाव का आश्रय लेने के बजाय मैं यह सोचकर समुद्री शैवाल को पकड़ने की कोशिश कर रहा हूं कि वह मुझे बचा लेगा। हम भगवान को कई जन्मों से भूल गए हैं और अब हमारी आदत बन गई है कि हम अपने प्रयास और बुद्धि पर ही भरोसा करते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि केवल भगवान श्री कृष्ण ही हमें वास्तविक आश्रय दे सकते हैं। उनकी शरण लेने के बजाय हम कुछ तात्कालिक समाधान ढूंढने लगते हैं।
हम भक्ति में दृढ़ भक्तों से श्रवण कर के हमारी श्रद्धा को सुदृढ़ बना सकते हैं।जब हम भगवान की उन लीलाओं को बारंबार सुनते हैं जिनमें वे अपने उन भक्तों को सुरक्षा प्रदान करते हैं और प्रेम के आदान प्रदान करते हैं जो सिवाय उनके किसी और का आश्रय कभी नहीं लेते जैसे गजेन्द्र मोक्ष , प्रह्लाद चरित, ध्रुव चरित। ये कथाएं न केवल सुनने में हृदय को तृप्त करने वाली हैं वरन् एक शक्तिशाली औषधि की तरह हमारी श्रद्धा और भक्ति को भी दृढ़ बनाती हैं। इसीलिए श्रील प्रभुपाद ने बारंबार जोर दिया कि हम प्रतिदिन सुबह और शाम को भगवद्कथा का श्रवण करें। श्रीमद्भागवत गीता और श्रीमद्भागवत महापुराण में भी भगवद्कथा के श्रवण की विधि के बारे में संस्तुति की गई है