जीवन का वास्तविक लक्ष्य । Jivan Ka Vastavik Lakshya In Hindi

Jivan Ka Vastavik Lakshya Kya Hai
वेदास!
19 Dec 2019

श्रील प्रभुपाद : यह आन्दोलन विशेषरूप से मानव को जीवन के वास्तविक लक्ष्य तक पहुँचने में सक्षम बनाने के लिए है ।

बॉब : वास्तविक लक्ष्य . . ?

श्रील प्रभुपाद : जीवन का वास्तविक लक्ष्य ।

बॉब : क्या जीवन का वास्तविक लक्ष्य ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करना है ?

श्रील प्रभुपाद : हाँ। अपने घर, भगवान के धाम वापस लौटना । यही जीवन का वास्तविक लक्ष्य है । सागर से आने वाला जल मेघों की रचना करता है मेघ जल के रूप में बरसते हैं तथा नदी के साथ बह कर पुनः सागर में प्रवेश करना इस प्रक्रिया का वास्तविक लक्ष्य है । हम सब भगवान् सें निकले हैं तथा अब हम भौतिक जीवन से बाधित हैं । अतएव इस बद्ध स्थिति से निकल कर अपने घर, भगवान के धाम, वापस लौटना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए । यही जीवन का वास्तविक लक्ष्य है ।

मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् ।
नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ॥भ. गी.  ८.१५॥

मुझे प्राप्त करके महापुरुष, जो भक्तियोगी हैं, कभी भी दुखों से पूर्ण इस अनित्य जगत् में नहीं लौटते, क्योंकि उन्हें परम सिद्धि प्राप्त हो चुकी होती है |
चूँकि यह नश्र्वर जगत् जन्म, जरा तथा मृत्यु के क्लेशों से पूर्ण है, अतः जो परम सिद्धि प्राप्त करता है और परमलोक कृष्णलोक या गोलोक वृन्दावन को प्राप्त होता है, वह वहाँ से कभी वापस नहीं आना चाहता | इस परमलोक को वेदों में अव्यक्त, अक्षर तथा परमा गति कहा गया है | दूसरे शब्दों में, यह लोक हमारी भौतिक दृष्टि से परे है और अवर्णनीय है, किन्तु यह चरमलक्ष्य है, जो महात्माओं का गन्तव्य है | महात्मा अनुभवसिद्ध भक्तों से दिव्य सन्देश प्राप्त करते हैं और इस प्रकार वे धीरे-धीरे कृष्णभावनामृत में भक्ति विकसित करते हैं और दिव्यसेवा में इतने लीन हो जाते हैं कि वे न तो किसी भौतिक लोक में जाना चाहते हैं, यहाँ तक कि न ही वे किसी आध्यात्मिक लोक में जाना चाहते हैं | वे केवल कृष्ण तथा कृष्ण का सामीप्य चाहते हैं, अन्य कुछ नहीं | यही जीवन की सबसे बड़ी सिद्धि है |

यह भगवतगीता का मत है । “यदि कोई मेरे समीप आता है वह फिर वापस नहीं लौटता।” कहाँ ? “इस स्थान को दुःखालयमशाश्वतम् कहते हैं ।” यह स्थान दुखों का घर है । यह तथ्य सबको ज्ञात है किन्तु उन्हें तथाकथित नेताओं ने मुर्ख बना दिया है । भौतिक जीवन दुखी जीवन है । भगवान् अर्थात् श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह स्थान दुखालयम् है-यह दुखों का स्थान है । तथा यह अशाश्वतम भी है…अनित्य है । आप समझोता नहीं कर सकते हैं-“ठीक है यह दुखपूर्ण है तो होने दीजिए। में यहाँ एक अमरीकी अथवा भारतीय की भाँती रहूँगा ।” नहीं । आप ऐसा भी नहीं कर सकते हैं । आप एक अमरीकी ही नहीं रह सकते हैं । आप ऐसा सोच सकते हैं कि अमरीका में ज़न्म ले कर आप अत्यन्त सुखी हैं । किन्तु आप अधिक समय तक एक अमरीकी नहीं रह सकते है । आप को यहाँ से बहिस्कृत्त होना पडेगा । तथा आपके अगले जन्म के विषय में आपको कुछ भी ज्ञान नहीं है । अतएव, यह दुःखालयमशाश्वतम् है…दुखमय तथा अनित्य । यह हमारा दर्शन है ।

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