कृष्ण के साथ हम अपने भूले हुए संबंध को कैसे स्थापित करें?

आदित्य!
24 Mar 2019
कृष्ण के साथ हम अपने भूले हुए संबंध को कैसे स्थापित करें? पूर्ण में पूछताछ: भक्तों का संग, डाइजेस्ट 524: रोमपाद स्वामी द्वारा लिखित।
प्रश्न: सही नज़रिये पर पूछे गये सवाल और आपके उत्साहजनक उत्तर के लिए मै आभारी हूं। मुझे लगता है कि मेरे पिछले जीवनकाल में निर्विशेषवाद की बहुत प्रभावकारी प्रवृत्ति रही है तथा इसलिए, "ज्ञान" के प्रति अत्यधिक लगाव है। जब मैं लोगों के बीच में शामिल होने की कोशिश करता हूं, तो मैं बाहरी हावभाव से परेशान होता हूं तथा मन में ललक और विलाप आता है इसलिए जप करने के लिए बहुत संघर्ष कर रहा हुँ। अकेले, मैं ग्रंथों को पढ़ने में और चिंतन करने में प्रसन्नता महसूस करता हूं और यह खुशी पहले भी नहीं थी, लेकिन, जैसे जैसे मैं दार्शनिक अवधारणाओं को समझ रहा हूं कि भगवान का साकार रूप ही परम लक्ष्य है और समझ नहीं पा रहा हूं कि कैसे प्रगति की जाए कि मैं साकार ब्रह्म का उपासक हो सकूँ। कृपा करके क्या आप क्रमशः साकार ब्रह्म के उपासक बनने की विधि को स्पष्ट कर सकते हैं?
रोमपाद स्वामी द्वारा उत्तर: हम सभी के कृष्ण के साथ एक अद्वितीय और शाश्वत संबंध है। यह रिश्ता या रस अभी सुसुप्तावस्था में है लेकिन इसे पुनः जागृत कर सकते हैं। उनके बारे में सुनना और बोलना हमें याद दिलाने में मदद करता है कि हम कौन हैं, वो कौन हैं, और उनके साथ हमारा रिश्ता क्या है। सुनने, बोलने और याद करने की यह विधि किसी भी वास्तविक आध्यात्मिक परंपरा में हो सकती है, और आमतौर पर यह भगवद्भक्ति या भक्ति-योग के रूप से जाना जाता है।साकार ब्रह्म के उपासक होना मतलब यह समझना और कृष्ण के साथ हमारे भूले / सुसुप्त संबंध को पुन: स्थापित करना (जोकि यह केवल हमारी तरफ से भूला गया है, और कृष्ण की ओर से नहीं)।
हम तरीको द्वारा कृष्ण के साथ हमारे संबंध स्थापित कर सकते हैं:
1. भक्तों का संग लें और उनके साथ प्रेम संबंध स्थापित करने का प्रयास करें। शुरूआत में प्रत्येक भक्त के साथ संबंध होना संभव नहीं है, इसलिए कुछ भक्तों के साथ ऐसा करना शुरू करें जिनके साथ आप सहज महसूस करते हैं। यह आसानी से कैसे किया जा सकता है यह समझने के लिए उपदेशामृत के श्लोक 4 को देखें।
2. नियमित रूप से हरे कृष्ण महा मंत्र का जाप करे और प्रतिबद्धता के साथ एक निश्चित संख्या में रोजाना जप करे।
3. यदि आप मंदिर के आसपास रह रहे हैं, तो कुछ प्रतिबद्धित साप्ताहिक सेवा में शामिल हों। इस तरह से हमारे लिए यह हमारी इंद्रियों को शुद्ध करने का अवसर है।
4. मंदिर में अर्चविग्रह का नज़दीक से दर्शन करे। भगवान हमारे सामने अर्चविग्रह के रूप में प्रकट होते हैं, ताकि उनके बारे में सोचकर हम अपने मन को शुद्ध कर सकें। इसी तरह, हम अपनी आँखों को केवल उन्हें देखकर, हमारे कानों और जिह्वा को उनके पवित्र नाम को सुनकर तथा कीर्तन करके और नाकों को उनको चढ़ायी गयी धूप और फूलों की महक लेकर और हमारे शरीर को उनके दर्शन के लिए खड़े होकर, उनके सामने नाचकर तथा उनको साष्टांग प्रणाम करके शुद्ध कर सकते हैं।
5. भक्त के मार्गदर्शन में श्रील प्रभुपाद की किताबों जैसेकि भगवद गीता और श्रीमद भागवतम पढ़ें। इन पुस्तकों को पढ़ने से समझ जाएगा और कृष्ण तथा उनके अपने भक्तों की परस्पर प्रेम के प्रति आस्था में विश्वास विकसित होगा। कृष्ण ही सर्वोच्च परम पुरुष हैं यह भी समझ जाएगा।
6. केवल कृष्ण प्रसाद ही खाने की आदत को डालनी चाहिए - खाने से पहले कृष्ण के लिए भोग बनाना और भोग लगाना चाहिए।