कृष्ण को हम कैसे देख या प्राप्त सकते हैं?

vedashindi
राजेश पाण्डेय, पीएच॰डी॰ !
8 Aug 2018

भगवान को प्रेमांजन के द्वारा आप देख सकते हैं। श्रील प्रभुपाद जी ने 05 जुलाई, 1974 को शिकागो में श्रीमद्भागवताम् 01.08.19 के व्याख्यान में बताया है कि कृष्ण की दया से ही कृष्ण को समझा जा सकता है। कृष्ण की दया से ही कृष्ण आते हैं। कृष्ण दृश्य हैं। प्रेमांजन-चच्छुरित-भक्ति-विलोचनेन (ब्रह्मसंहिता 5.38)। जब आपको प्रशिक्षित किया जाता है कि भगवान को कैसे प्यार किया जाए, तो कृष्ण स्वयं प्रकट करेंगे, और आप उनको देखेंगें। प्रेमांजन-चच्छुरित। इन भौतिक आंखों से नहीं, बल्कि दुसरी आँखों से। वह आंखें क्या है? प्रेमांजन, प्यार, प्यार की मलहम, जब यह आपकी आंखों में लगायी जाती है, तो आप देख सकते हैं।यानि कि भक्ति के द्वारा ही उनको देखा जा सकता है। इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है जिससे कि उनको देखा जा सके। यहाँ पर सवाल ये उठता है कि अपने को प्रशिक्षित कर सकते हैं? यह प्रामाणिक गुरु, साधु और शास्त्र के निर्देशन में रह कर ही संभव हैं। अब सवाल ये उठता है कि यह प्रामाणिक गुरु कौन है और कहाँ मिलेंगे? इसका उत्तर ये है कि भगवान को प्राप्त करने के लिए चार प्रामाणिक सम्प्रदाय है....

  1. ब्रह्म सम्प्रदाय 
  2. श्री सम्प्रदाय
  3. रूद्र सम्प्रदाय
  4. कुमार सम्प्रदाय 

भगवान ने अपने को जानने के लिए इन चार लोगों को ब्रह्मॉजी, लक्ष्मीजी, शंकरजी और चार कुमारों (सनक, सनानंद और सनकादी) को ज्ञान दिया। जिनके द्वारा यह ज्ञान आज भी गुरु शिष्य परंपरा द्वारा चली आ रही है और यही भगवद प्राप्ति के लिए प्रामाणिक स्थल हैं। यहीं चार जगहों पर ही हमें प्रामाणिक गुरु मिलेंगे और फिर हम उनके निर्देशन में रहकर भगवान को देख या प्राप्त कर सकते हैं। इन जगहों पर होता क्या है कि हमें भगवद प्राप्ति होगी? यहाँ पर भगवान को प्राप्त करने के लिए जो ज्ञान दिया है उसे बिना किसी मिलावट के यथारूप में गुरु से शिष्य को दी जाती है जो कि परंपरा से चली आ रही है। इसी कारण यह परंपरा आज भी मौजूद है क्यूँ की यहाँ पर किसी प्रकार का मिलावट नहीं है और ज्ञान को यथारूप दिया जाता है।

 

हरी ओम् तत् सत्! 

 

“हमें हमेशा ही भगवान विष्णु का श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना चाहिये”

          हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। 

                हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

हरे कृष्ण

 

डा. रामानन्द दास (राजेश पाण्डेय)

 

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