क्रोध क्यूँ उत्पन्न होता है तथा उसका दुस्परिणाम क्या हैं और उससे कैसे बचा जाए?

आदित्य!
24 Dec 2018
आज का विषय: क्रोध क्यूँ उत्पन्न होता है तथा उसका दुस्परिणाम क्या हैं और उससे कैसे बचा जाए?
भगवद् गीता के दूसरे अध्याय के 62-63 श्लोक में भगवान अर्जुन को बता रहे हैं..
जो चीज़ें हमारी इंद्रियो को अच्छी लगती है मतलब की भोग विलास की चीज़ें या ऐसे विषयों का चिन्तन करते है तो उनमें आसक्ति उत्पन्न होती है और आसक्ति उत्पन्न होने से हम उसका भोग करना चाहते है जो कि काम कहलाता है और फिर उस काम की इच्छा पूरी नहीं होने से क्रोध उत्पन्न होता है।
क्रोध उत्पन्न होने से हम अपने शक्ति और अपनी पहचान भुल जाते हैं और जब ऐसा होता है तो उसे ही पूर्ण मोह कहते है अर्थात जो होता है वो दिखता नहीं और जो दिखता है वो होता नहीं। जब मोह उत्पन्न होता है तो वह अपनी स्मरणशक्ति से विभ्रमित हो जाता है। जब स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाति है, तो उसकी बुद्धि नाश हो जाती है और बुद्धि नष्ट होने पर मनुष्य का पतन हो जाता है अर्थात वह अपने लक्ष्य से भटक जाता है।
पाप से घृणा करो पापियों से नहीं?
भगवान आगे के श्लोक यनीकि 2.64 में बताते है कि समस्त आसक्तियों तथा द्वेष से मुक्त हुआ व्यक्ति और जो अपनी इन्द्रियों को संयम द्वारा वश में किया है वही व्यक्ति ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है अर्थात वह व्यक्ति भगवान् की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकता है।
अब सवाल ये आएगा की इंद्रियो और मन को कैसे संयमित किया जाए?
उत्तर: उसकी सबसे सरल विधि है भगवान के नाम का जाप। इसी नाम जाप की विधि द्वारा हम अपने इंद्रियो और मन को वश में कर सकते हैं। इसीलिए सदा ही भगवान के नाम का जप करिए और हमेशा ही ख़ुश रहिए।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
“परम विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम” इस कलियुग में यह संकिर्तन आंदोलन (कृष्ण के पवित्र नाम का सामुहिक जाप) मानवता के लिए प्रमुख वरदान है।
हरे कृष्ण
डा. रामानन्द दास
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