क्या भगवान को भी पीड़ा होती है?

वेदास!
28 Dec 2019
श्री चैतन्य महाप्रभु का आंदोलन यही है कि आप जाओ और प्रचार करो, कृष्ण-उपदेश के प्रति जागरूक करो। यही कृष्णभावनामृत आंदोलन है। हम अपने सभी भक्तों को यही शिक्षा देते हैं की कैसे कृष्ण-उपदेश का प्रचार करना है, कैसे कृष्ण भावनामृत का प्रचार करना है ।
फिर अनर्थोपशमं साक्षाद्.. जितने भी अनर्थ ग्रहण किये हुए सब समाप्त हो जायेंगे। अंत में शुद्ध भावना और कृष्ण-भावना ही शुद्ध भावना है। शुद्ध भावना यानि कि यह समझना, "मैं कृष्ण के साथ उनके ही अंग की भांति बहुत ही घनिष्टता से जुड़ा हुआ हूँ। "जैसे मेरी एक ऊँगली बहुत ही घनिष्टता से मेरे शरीर से जुडी हुयी है। यदि मेरी ऊँगली में लेश मात्र भी दर्द होता है मैं विचलित हो जाता हूँ क्योंकि ऊँगली के साथ मेरा घनिष्ट सम्बन्ध है।
उसी प्रकार भगवान के साथ भी हमारा घनिष्ट सम्बन्ध है और हम पतित हैं। इसलिए कृष्ण को भी थोड़ी पीड़ा होती है और तभी तो वे अवतरित होते हैं।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे (भ गी ४.८)
भगवान कृष्ण को पीड़ा होती है इसलिए आप कृष्ण भवनाभावित होइए, तभी कृष्ण को आनंद की अनुभूति होगी। और यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन कर रहा है ।
(श्रील प्रभुपाद द्वारा वृन्दावन में २४ अप्रैल, १९७५ को श्रीमद भागवताम १.७.७ पर दिए गये प्रवचन से लिया गया)
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