क्या मैं सच्चे आध्यात्मिकता के मार्ग पर हूँ?

adhyatmik
आदित्य!
27 Apr 2019

प्रश्न: जहाँ तक मुझे याद है, मैं भगवान विष्णु का भक्त रही हूं। कई मौकों पर, अपने सपनों में मैंने उनको मुझसे बातें करते देखा है। मैं अब एक अनुष्ठात्री व्यक्ति नहीं हूं, मैं अपने घर के मंदिर में नहीं बैठती क्योंकि मैंने उस अवस्था को पार कर लिया है। क्या यह गलत है? मैं हर दिन भगवान के साथ बातचीत करती हूं, मेरा हृदय में उनके लिए काफ़ी प्यार भरा है। मैंने उनसे एक संकेत दिखाने के लिए कहा, अगले हफ्ते मैं अपने आप ही दलाई लामा से मिली। मेरी आत्मा भगवान के साथ रहने के लिए यों तड़पती है? मुझे लगता है कि मुझे उनके साथ रहना चाहिए, लेकिन मैं इस धरती पर उनके लिए उत्सुक हूं। मेरा हृदय रोता है आँखों से आँसु आते है। मेरे पास एक सुंदर जीवन है - अद्भुत पति, बच्चे, सास-ससुर, माता-पिता और अच्छी वित्तीय स्थिरता और सबकुछ है। फिर भी मैं केवल अपने निर्माता से मिलना चाहती हूं और उनसे कभी दूर ना रहूँ जब तक कि यह सार्वभौमिक आवश्यकता न हो। क्या यह सामान्य भावना है? कृपया मेरी भावनाओं पर कुछ स्पष्टता देने में मेरी मदद करें?

रोमपाद स्वामी द्वारा उत्तर: कृष्ण हमें भगवदगीता में निर्देश देते हैं कि आत्मा की प्राकृतिक प्रवृत्ति कैसी है और कैसे हम आनंदमय और खुश रह सकते हैं, जब हम भक्ति द्वारा उनके साथ अपने भूले हुए रिश्ते को पुनर्स्थापित करते है। हम सेवा द्वारा कृष्ण के साथ अपने प्रेम को मजबूत कर सकते हैं। कृष्ण गीता के 11.54 और 11.55 में उल्लेख करते हैं कि उन्हें केवल अनन्य भक्ति के माध्यम से जाना और समझा जा सकता है।

वैदिक ग्रंथों के साथ-साथ भगवद्गीता और पुराणों में उल्लिखित है कि हरे कृष्ण महामंत्र का जाप विशेष रूप से जिस वर्तमान युग में रहते हैं - कलियुग के लिए निर्धारित है।

जैसा कि आपने अपने प्रश्न में उल्लेख किया है कि कृष्ण की दया से आपके पास बहुत अच्छा जीवन है। इसलिए, मैं आपको कृष्ण की भक्ति में आगे बढ़ने के लिए अपने समय का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता हूं। नियमित रूप से माले पर एक निश्चित संख्या में हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना सबसे अच्छी विधि है। इससे आपको कृष्ण से तुरंत जुड़ने में मदद मिलेगी क्योंकि भगवान का पवित्र नाम और भगवान अलग नहीं हैं। जैसे-जैसे आप हर रोज जप अभ्यास करेंगी (ध्यान से!) जो भाव आप अनुभव कर रही हैं वे अधिक परिपक्व और परिष्कृत हो जाएँगें। आप भगवान से अलगाव महसूस नहीं करेंगीं बल्कि आप महसूस करेंगीं कि भगवान हमेशा आपके साथ है।

(रोमपाद स्वामी द्वारा अंग्रेज़ी में दिये गये उत्तर को हिंदी में अनुवाद किया गया है)

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