नगर संकीर्तन क्या है?

आदित्य!
19 Mar 2019
जब भक्तों का एक समूह गाँव और शहरों की गलियों में जाकर मृदंग और करताल के साथ पवित्र नाम का ऊंची आवाज से उच्चारण करें तो उसे " नगर संकीर्तन " अथवा " हरिनाम संकीर्तन " कहते हैं । संकीर्तन का प्रचार स्वयं श्रीचैतन्य महाप्रभु ने किया , जो साक्षात परम पुरूषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण ही है ।
श्री कृष्ण के पावन नाम के संकीर्तन सुनने से आध्यात्मिक दृष्टि से मंद बुद्धि वाले मनुष्य ही नहीं बल्कि उन सभी प्राणियों पर जिनके पास भक्ति करने का या तो अवसर नहीं है या जिनकी इसमें रूचि नहीं है , को भी बहुत लाभ मिलता है ।
पानीहाटी में श्री रघुनाथ दास गोस्वामी जी का दंड (दही-चिड़वा) महोत्सव।
संकीर्तन कलियुग से दूषित वातावरण को पवित्र करता है । संकीर्तन में जितने अधिक भक्त हो उतना ही अच्छा है परन्तु यदि बहुत भक्त उपलब्ध नहीं हो तो तीन या चार अथवा दो या एक भक्त भी संकीर्तन पर जा सकता है । संकीर्तन के साथ साथ यदि प्रभुपादजी के ग्रन्थों तथा कृष्णप्रसाद का वितरण भी हो , तो आध्यात्मिक दृष्टि का कार्यक्रम और भी स्फूर्तिदायक तथा उत्साह वर्धक बन जायेगा ।
यदि संकीर्तन मण्डली के साथ कुछ रंगबिरंगे झंडे और बड़े - बड़े विज्ञापन पत्र भी हों तो यह एक चलता फिरता उत्सव बन जायेगा और सब के मन को बहुत प्रसन्नता प्रदान करेगा । यदि एक लाऊडस्पीकर का प्रयोग भी किया जाय तो यह भगवान के पावन नामों को दूर - दूर तक और अधिक बद्धजीवात्माओं तक पहुंचाने में बहुत सहायता करेगा ।
हरिनाम संकीर्तन पर आप अधिक से अधिक समय दें , और जितनी दूरी तक जा सके उतना ही अच्छा है । आप अनुभव करेंगें कि श्रीचैतन्य महाप्रभु की कितनी अधिक कृपा आपको प्राप्त हो रही है ।
“परम विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम”
सदा ही भगवान के नाम का जाप करिए
यह संकीर्तन कलियुग में मानबता के लिये परम वरदान है
“हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे”।।