पाप का गुरु कौन । Paap ka guru kon

राजेश पाण्डेय, पीएच॰डी॰ !
17 Sep 2020
प्रेरक कहानी: पाप का गुरु कौन?
एक ब्रह्मचारी ब्राह्मण पुत्र कई वर्षों तक काशी में शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद अपने गांव लौट रहे थे। तभी उनको प्यास लगी थीं और प्यास के कारण वो एक कुएँ पर गए। वहाँ गांव की एक सभ्य महिला ने पानी पिलाया और पूछा कि कहाँ से आ रहे और कहाँ जा रहे हो? तो उन्होंने बताया कि मैं काशी से विद्याध्ययन समाप्त करके अब घर वापस जा रहा हूँ।तो उस महिला ने उनसे पूछा, हे ब्रह्मचारी ब्राह्मण कृपा करके आप हमें यह बताइए कि पाप का गुरु कौन है?
यह प्रश्न सुन कर वह ब्रह्मचारी चकरा गए, क्योंकि तो ये पता था क़ि भौतिक व आध्यात्मिक गुरु तो होते हैं, लेकिन पाप का भी गुरु होता है, यह उनकी समझ और अध्ययन के बाहर था। ब्रह्मचारी को लगा कि उनका अध्ययन अभी अधूरा है, इसलिए वे फिर काशी लौटे। फिर अनेक गुरुओं से मिले। मगर उन्हें उस भद्र महिला के सवाल का जवाब नहीं मिला।
अचानक एक दिन उनकी मुलाकात एक वेश्या से हो गई। उसने ब्रह्मचारी से उनकी परेशानी का कारण पूछा, तो उन्होंने अपनी समस्या बता दी। वेश्या बोली, पंडित जी..! इसका उत्तर है तो बहुत ही आसान, लेकिन इसके लिए कुछ दिन आपको मेरे पड़ोस में रहना होगा। ब्रह्मचारी के हां कहने पर उसने अपने पास ही उनके रहने की अलग से व्यवस्था कर दी। वो ब्रह्मचारी ब्राह्मण किसी के हाथ का बना खाना नहीं खाते थे, नियम-आचार और धर्म के कट्टर अनुयायी थे। इसलिए अपने हाथ से खाना बनाते और खाते। इस प्रकार से कुछ दिन बड़े आराम से बीते, लेकिन सवाल का जवाब अभी नहीं मिला।
एक दिन वेश्या बोली, हे ब्राह्मण! आपको बहुत तकलीफ होती है खाना बनाने में। यहां देखने वाला तो और कोई है नहीं। आप कहें तो मैं नहा-धोकर आपके लिए कुछ भोजन तैयार कर दिया करूं। आप मुझे यह सेवा का मौका दें, तो मैं दक्षिणा में पांच स्वर्ण मुद्राएं भी प्रतिदिन दूंगी। स्वर्ण मुद्रा का नाम सुन कर ब्रह्मचारी को लोभ आ गया। साथ में पका-पकाया भोजन। अर्थात दोनों हाथों में लड्डू। इस लोभ में वो ब्राह्मण पुत्र अपना नियम-व्रत, आचार-विचार धर्म सब कुछ भूल गए। उन्होने हामी भर दी और वेश्या से बोले, ठीक है, तुम्हारी जैसी इच्छा। लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना कि कोई देखे नहीं तुम्हें मेरी कोठी में आते-जाते हुए। वेश्या ने पहले ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर ब्रह्मचारी के सामने परोस दिया।
पर ज्यों ही वे खाने को तत्पर हुए, त्यों ही वेश्या ने उनके सामने से परोसी हुई थाली खींच ली। इस पर वे क्रुद्ध हो गए और बोले, यह क्या मजाक है? वेश्या ने कहा, यह मजाक नहीं है जी, यह तो आपके प्रश्न का उत्तर है। यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, किसी के हाथ का भी नहीं खाते पीते थे, मगर स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आपने मेरे हाथ का बना खाना भी स्वीकार कर लिया। आपने ये सब लोभ में किया अतः यह लोभ ही पाप का गुरु है।
इस लोभ से हमें छुटकारा तब मिलेगा जब हम परम से जुड़ेंगे। यह प्रक्रिया कैसे कार्य करती है: जैसे आग के सम्पर्क में आकर लोहा भी आग बन जाता है उसी तरह से परम भगवान परम शुद्ध हैं और जब कोई उनसे जुड़ते है तो वह भी शुद्ध हो जाता है। परम भगवान से जुड़ने के लिए हमें हमेशा ही भगवान के नाम धाम रूप गुण तथा लीलाओं की महिमा का श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना चाहिये। “परम विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम” कलियुग में यह संकीर्तन आंदोलन (भगवान के नाम का जप और कीर्तन) मानवता के लिए परम वरदान है। इसीलिए सदा ही भगवान के नाम का जप करिए और ख़ुश रहिए।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
हरे कृष्ण
रामानन्द दास
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