पानीहाटी में श्री रघुनाथ दास गोस्वामी जी का दंड (दही-चिड़वा) महोत्सव

श्री रघुनाथ दास गोस्वामी
नेहा!
16 Mar 2019

श्रीला रघुनाथ दास गोस्वामी जी को खबर मिली कि श्री नित्यानंद प्रभु सप्तग्राम के अंतरगत पानीहाटी आयें हैं। उनके साथ रामदास, गदाधर, पुरंदर पण्डित आदि पार्षद हैं। महाप्रभु ने उन्हें घर – घर जाकर प्रेम बांटने का आशीर्वाद दिया है। नित्यानंद जिसे एक बार देख लेते उनमे अश्रु , कंप ,पुलक , हुंकार आदि सात्विक गुण प्रकट होने लगते। श्री रघुनाथ दास गोस्वामी जी को लगा इस बार अवश्य कृपा होगी तथा वे पानीहाटी श्री नित्यानंद के पास पहुँच गये। श्री नित्यानंद कीर्तन नर्तन के पश्चात वट तीर के नीचे चबूतरे पर बैठे थे। श्री रघुनाथ दास गोस्वामी जी ने आते ही नित्यानंद को साष्टांग किया। अन्य भक्तगण तो श्रीरघुनाथ दास गोस्वामी जी को जानते ही थे। उन्होंने नित्यानंद को बताया की ये तो यहाँ के मालिक हैं। 

श्री नित्यानंद ने उठकर श्री रघुनाथ दास गोस्वामी जी को उठाया| उनके सर पे चरण कमल रखकर फिर उन्हें उठाकर ह्रदय से लगा लिया। फिर प्रेम से श्रीला रघुनाथ दास गोस्वामी जी को देखते हुए बोले ,” चोर, इतने दिनों बाद आया। तुझे दंड मिलेगा।” श्री रघुनाथदास गोस्वामी जी हैरान होकर निताई चाँद की तरफ देखने लगे परन्तु निताई का भाव था गौरांग महाप्रभु भगवत तत्त्व हैं, उन तक पहुँचने के लिए गुरु तत्त्व आवश्यक है एवं श्री रघुनाथदास गोस्वामी जी ने दो बार गौरांग महाप्रभु से सीधे ही कृपा प्राप्त करने का प्रयास किया था।

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दंड महोत्सव
दंड के लिए श्री रघुनाथ दास गोस्वामी जी तैयार थे। श्री नित्यानंद ने उन्हें दंड स्वरुप सभी भक्तों के लिए दही चिवडा खिलाने का आदेश दिया। श्री रघुनाथदास गोस्वामी जी को दंड सुनकर ख़ुशी हुई। धन और सेवकों की उन्हें कमी नही थी। अल्प समय में सारा इंतज़ाम हो गया। इतना सारा चिवडा , केला, गुड़, दूध, दही मंगवाया गया| केला और गुड़ को मिलकर मिश्रित द्रव्य बनाया गया। फिर चिवड़े के दो हिस्से किये गये। एक हिस्से में चिवड़े और दही तथा गुड़ केले का मिश्रण डाला गया। दूसरे हिस्से में चिवडों में दूध तथा गुड़ केले का मिश्रण डाला गया। 

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सभी भक्तों को एक एक डोना दही चिवडा व एक डोना दूध चिवडा दिया गया| फिर श्री रघुनाथ दास गोस्वामी जी ने वट वृक्ष के नीचे आसन बिछाकर दो दो डोने श्री गौरांग महाप्रभु एवं श्री नित्यानंद प्रभु के लिए रख दिए। निताई चाँद ने ध्यानस्त होकर श्री गौर हरी को पुकारा एवं प्रेम पुकार सुनकर गौरांग महाप्रभु वहां आये। उनके आते ही श्री नित्यनन्द जी खड़े हो गये एवं महाप्रभु के साथ श्री नित्यानंद जी सभी लोगों के बीच गये । सभी के डोने में से एक एक कण उठाकर श्री गौरांग महाप्रभु को खिलाने लगे| अंत में श्री नित्यानंद गौरांग महाप्रभु के साथ चबूतरे पर आकर बैठ गये। श्री गौरांग महाप्रभु वहां प्रकट हो गये थे , यह दृश्य सभी को नही दिखा। जिन्होंने प्रेम चक्षुओं से उन्हें देखा, उन्हें ही श्री महाप्रभु दिखे। नित्यानंद ने अपना एवं श्री गौरांग का अवशिष्ट प्रसाद श्री रघुनाथ दास गोस्वामी जी को दिया। दंड महोत्सव समाप्त हुआ। आज भी जहान्वी तट पर उसी वट वृक्ष के नीचे ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को हजारों साधू संत एकत्र होकर श्री रघुनाथ का दंड महोत्सव मनाते हैं।

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