रक्षा बंधन कब से और क्यों मनाया जाता है। Raksha bandhan kab se aur kyon manaya jata hai

Raksha bandhan
वेदास!
9 Aug 2021

हिंदू धर्म में रक्षाबंधन(Raksha Bandhan) का त्योहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है। जो भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है. भारत के अलावा भी विश्व भर में जहाँ पर हिन्दू धर्मं के लोग रहते हैं, वहाँ इस पर्व को भाई बहनों के बीच मनाया जाता है. इस त्यौहार का आध्यात्मिक महत्व के साथ साथ ऐतिहासिक महत्त्व भी है. इसे मनाने के पीछे कई सारी कहानियां छुपी हुई हैं।

 

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रक्षाबंधन कब मनाया जाता हैं

हिंदू धर्म में रक्षाबंधन भाई बहन का यह त्यौहार प्रति वर्ष काफी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई में राखी बांधती हैं और उनके अच्छे स्वास्थ और लंबे जीवन की कामना करती हैं। रक्षाबंधन का त्योहार हिन्दू पचांग के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष रक्षाबंधन 22 अगस्त को मनाया जाएगा। 

2021 में रक्षाबंधन कब हैं शुभ मुहूर्त क्या हैं

रक्षा बंधन का त्यौहार कब है 22 अगस्त 2021
दिन रविवार
राखी बांधने का शुभ मुहुर्त सुबह 6:15 बजे से रात 7:40 बजे तक
कुल अवधि 13 घंटे 25 मिनट
रक्षा बंधन अपरान्ह मुहुर्त दोपहर 1:42 से 4:18 तक
रक्षा बंधन प्रदोष मुहुर्त शाम 8:08 से 10:18 रात्रि तक


जानिए क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन

रक्षाबंधन सम्बंधित कुछ पौराणिक कथाएं जुडी हुईं है. इन कथाओं का वर्णन नीचे किया जा रहा है.

द्रौपदी और श्रीकृष्‍ण की कथा

रक्षाबंधन को लेकर प्राचीन काल की एक और कथा प्रचलित है। यह कथा श्रीकृष्ण और द्रोपदी की है। इस कथा में द्रोपदी के चीरहरण की गाथा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब सुदर्शन चक्र से श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध करते समय भगवान कृष्ण की तर्जनी उंगली कट गयी थी। उनकी उंगली से बहुत रक्त बह रहा था। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर श्रीकृष्ण की अंगुली पर पर पट्टी बांध दी थी। इसके बदले श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि वो उनकी साड़ी की कीमत जरूर अदा करेंगे। उस दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था। तभी से रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है। यही कारण है कि श्रीकृष्ण ने एक भाई का फर्ज निभाते हुए चीर हरण के समय द्रौपदी की साड़ी को बढ़ाकर उन्हें लौटाया और उनकी लाज बचाई थी।.

वामन अवतार कथा

भगवत पुराण और विष्णु पुराण के आधार पर यह माना जाता है कि जब एक बार भगवान विष्णु असुरों के राजा बलि के दान धर्म से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बलि से वरदान मांगने के लिए कहा। तब बलि ने उनसे पाताल लोक में बसने का वरदान मांगा। भगवान विष्णु के पाताल लोक चले जाने से माता लक्ष्मी और सभी देवता बहुत चिंतित हुए। इसके बाद माँ लक्ष्मी ने बलि को रक्षा धागा बाँध कर भाई बना लिया. इस पर बलि ने लक्ष्मी से मनचाहा उपहार मांगने के लिए कहा. इस पर माँ लक्ष्मी ने राजा बलि से कहा कि वह भगवान विष्णु को इस वचन से मुक्त करे कि भगवान विष्णु उसके महल मे रहेंगे. बलि ने ये बात मान ली और साथ ही माँ लक्ष्मी को अपनी बहन के रूप में भी स्वीकारा. उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। तभी से रक्षाबंधन मनया जाता है।

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बादशाह हुमायूं और कमर्वती की कथा

रक्षाबंधन पर हुमायूं और रानी कर्मवती की कथा सबसे अधिक याद की जाती है। कहा जाता है कि राणा सांगा की विधवा पत्नी कर्मवती ने हुमांयू को राखी भेजकर चित्तौड़ की रक्षा करने का वचन मांगा था। हुमांयू ने भाई का धर्म निभाते हुए चित्तौड़ पर कभी आक्रमण नहीं किया और चित्तौड़ की रक्षा के लिए उसने बहादुरशाह से भी युद्ध किया

भविष्‍य पुराण की कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धरती की रक्षा के लिए देवता और असुरों में 12 साल तक युद्ध चला लेकिन देवताओं को विजय नहीं मिली। तब देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र की पत्नी शची को श्राणण शुक्ल की पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर रक्षासूत्र बनाने के लिए कहा। इंद्रणी ने वह रक्षा सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा और फिर देवताओं ने असुरों को पराजित कर विजय हासिल की।

इंद्रदेव संबंधित मिथक:

भविष्य पुराण की कथा के अनुसार दैत्यों और देवताओं के मध्य होने वाले एक युद्ध में भगवान इंद्र को एक असुर राजा, राजा बलि ने हरा दिया था. इस समय इंद्र की पत्नी सची ने भगवान विष्णु से मदद माँगी. भगवान विष्णु ने सची को सूती धागे से एक हाथ में पहने जाने वाला वयल बना कर दिया. इस वलय को भगवान विष्णु ने पवित्र वलय कहा. सची ने इस धागे को इंद्र की कलाई में बाँध दिया तथा इंद्र की सुरक्षा और सफलता की कामना की. इसके बाद अगले युद्द में इंद्र बलि नामक असुर को हारने में सफ़ल हुए और पुनः अमरावती पर अपना अधिकार कर लिया. यहाँ से इस तरह इस पवित्र धागे का प्रचलन आरम्भ हुआ. इसके बाद युद्द में जाने के पहले अपने पति को औरतें यह धागा बांधती थीं. इस तरह यह त्योहार सिर्फ भाइयों बहनों तक ही सीमित नहीं रह गया.

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सिकंदर और पुरू की कथा

इतिहास के अनुसार राजा पोरस को सिकंदर की पत्नी ने राखी बांधकर अपने सुहाग की रक्षा का वचन मांगा था। जिसके चलते सिकंदर और पोरस ने रक्षासूत्र की अदला बदली की थी। एक बार युद्ध के दौरान सिकंदर ने पोरस पर हमला किया तो वह रक्षासूत्र देखकर उसे अपना दिया हुआ वचन याद आ गया और उसने पोरस से युद्ध नहीं किया।

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