रावण के कामी, अहंकारी, दम्भी जीवन चरित्र पर कुछ प्रकाश।

राजेश पाण्डेय, पीएच॰डी॰ !
7 Oct 2019
रावण को पंडित, संयमी तथा बहन का रक्षक कहने वाले मिथ्याचारी, अज्ञानी, नीम-हकीमों के लिए रावण के कामी, अहंकारी, दम्भी जीवन चरित्र पर कुछ प्रकाश:
रावणदहन यानी कि विजयादशमी अर्थात दशहरा का समय आते ही कुछ मूढ़ अति अज्ञानी एवं अभिमानी लोगों की पोस्ट पढ़कर दुख होता है और अन्तरात्मा में पीड़ा भी होती है जिसमें ये लोग दुराचारी रावण को पंडित और संयमी कहते हैं। क्यूँकि इनको शास्त्र का ज्ञान ही नहीं है और ना तो वे लोग उस ज्ञान को सुनना या समझना चाहते है।
कुछ कलियुगी लोग पोस्ट करते हैं कि रावण ने अपनी बहन सूपणखा के नाक कान काटे जाने का बदला लेने के लिए ऐसा किया। और पोस्ट करते है कि उनको रावण जैसा भाई चाहिए। साथ में ये लोग कहते हैं कि रावण ने सीताजी का स्पर्श तक नहीं किया था। ऐसे लोगों ने न तो रामायण का अध्ययन किया है न तो अपनी बुद्धि का उपयोग करते हैं।
रावण ने परस्त्री को नहीं छुआ यह पूरी तरह गलत है। रामायण में अरण्यकाण्ड के अनेक श्लोकों में स्पष्ट वर्णन है कि माता सीता का अपहरण रावण ने काम के वशीभूत होकर किया था, कामवासना में अंधे होकर रावण ने माता सीता का अत्यंत अश्लील वर्णन किया है जो मैं यहाँ नहीं रखना चाहते।
माता सीता ने उस नीच को अनेक तरह से धिक्कारा-दुत्कारा और श्रीराम के प्रताप और यश का वर्णन करके दूर हट जाने को कहा। परन्तु उस दुष्ट ने बड़ी ही निर्ममता से माता के बालों को पकड़ा और अपने कुकर्मी हाथों से स्पर्श किया, तब माता सीता मर्माहत होकर घोर विलाप करने लगीं "बिलपति अति कुररी की नाईं" और दुःख से छटपटाती हुईं रावण को अनेक उलाहने देने लगीं। ऐसे पापात्मा को आजकल के कलियुगी दुरात्मा लोग महात्मा सिद्ध करने में बड़ी रूचि लेते हैं।
इत्युक्त्वा मैथिलीं वाक्यं प्रियार्हां प्रियवादिनीम्।
अभिगम्य सुदुष्टात्मा राक्षसः काममोहितः।
जग्राह रावणः सीतां बुधः खे रोहिणीम् इव॥
वामेन सीतां पद्माक्षीं मूर्धजेषु करेण सः।
ऊर्वोस्तु दक्षिणेनैव परिजग्राह पाणिना॥
जो प्रियवचन सुनने के योग्य और सबसे प्रिय वचन बोलने वाली थीं, उन मिथिलेशकुमारी सीताजी से ऐसा अप्रिय वचन कहकर काम से मोहित हुए उस अत्यंत दुष्टात्मा राक्षस रावण ने निकट जाकर (माता के समान आदरणीया) सीता को पकड़ लिया, मानो बुध ने आकाश में अपनी माता रोहिणी को पकड़ने का दुस्साहस किया हो। उसने बाएँ हाथ से कमलनयनी सीता के केशों सहित मस्तक को पकड़ा तथा दाहिना हाथ उनकी दोनों जंघाओं के नीचे लगाकर उसके द्वारा उन्हें उठा लिया।
(वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड, सर्ग 49, श्लोक 15-17)
ततस्तां परुषैर्वाक्यैरभितर्ज्य महास्वनः।
प्रत्यदृश्यत हेमाङ्गो रावणस्य महारथः॥
रथ के प्रकट होते ही जोर जोर से गर्जना करने वाले रावण ने कठोर वचनों द्वारा विदेहनन्दिनी सीता को डाँटा और पूर्वोक्त रूप से गोद में उठाकर तत्काल रथपर बिठा दिया। (अरण्यकाण्ड 49/20)
देखिए रामायण में कितने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि रावण ने सीताजी को अपने हाथों से क्रूरतापूर्वक न केवल स्पर्श किया था बल्कि जंघाओं से उठाकर निर्लज्जता से उन्हें गोद में उठाकर अपहरण किया था।
पुनः अगले श्लोक में देखिए कि लंका में प्रवेश करते समय भी दुष्ट रावण ने उन्हें अपनी गोद में उठा रखा था ताकि वे उनकी पकड़ से न छूट जाएं।
स तु सीतां विचेष्टन्तीमङ्केनादाय रावणः।
प्रविवेश पुरीं लङ्कां रुपिणीं मृत्युमात्मनः॥
सीताजी उसके बग़ल में छटपटा रही थी रावण ने सीता का परिवहन करते हुए लंका शहर में प्रवेश किया, जो रावण की लंका में उसकी मृत्यु आ गयी है उस समान प्रतीत हुआ।
(अरण्यकाण्ड, सर्ग 54, श्लोक 11)
अब रही बात रावण की बहन सूपणखा की तो वो तो ऐसी कामी बहन थी जो शादीशुदा भगवान श्रीराम जी की पत्नी, सीता जी को मारकर राम जी का भोग करना चाहती थी। और उसी काम के चक्कर उसने माता सीता की हत्या करना चाहा और अपना नाक कान कटवा बैठी। दुसरी तरफ़ उसका भाई रावण शादीशुदा स्त्री, माता जानकी के पति, भगवान श्री राम को मारकर उनका भोग करना चाहता था। ये तो है दोनो भाई बहन कि कहानी तो भला कौन इंसान ऐसा भाई या बहन चाहेगा?
अब आते है रावण कि हक़ीक़त पर क्या वो सचमुच में अपनी बहन का बदला लेने के लिए माता सीता का अपहरण किया था? कब सूपणखा ने अपने नाक कान काटने की बात रावण को बतायी तो उसने पूछा की खर दूषन के पास क्यूँ नहीं गयी? सूपणखा ने जब बताया कि रामजी के हाथों उनका भी वध हो गया है तो रावण ने ना बोल दिया। उसके बाद सूपणखा रावण की कमजोरी जानती थी उसने बताया कि उन दोनो तपस्वीयों के साथ एक बहुत ही सुंदर नारी है मैं तो उसको तुम्हारे लिए लेने गयी थी लेकिन उन्होंने मेरा ये हाल कर दिया। वो सुंदर नारी तो तुम्हारे महल की शोभा होनी चाहिए। तब रावण बहन का बदला लेने नहीं बल्कि अपने काम वासना की पूर्ति के लिए एक भिक्षुक बन कर धोखे से माता सीता का अपहरण कर लाया और अंत में रामजी के द्वारा उस असुर का वध किया गया। तो ऐसा भाई रावण था।
रावण ने कुशध्वज की तपस्वी पुत्री वेदावती का बलात्कार करना चाहा था वो भी कब जब वो तपस्या कर रही थी। वेदावती कुशध्वज की सीधी पुत्री थी, जो कि बृहस्पति के पुत्र थे। और कुशध्वज के मन से वो ये पुत्री उत्पन्न हुयी थी और भगवान विष्णु का वरण करना चाहती थी इसीलिए वो तपस्या कर रही थी। एक दैत्य ने कुशध्वज की हत्या कर दिया और उनकी पत्नी भी अग्नि में प्रवेश कर गई। तब वेदावती अकेली पड़ गयी थी और तपस्या करने चली गयी। वह लक्ष्मी जी का अवतार भी मानी जाती है। रावण जब उधर से गुजर रहा था तो उनकी सुन्दरता देख के वो कामी हो गया और उनको भोगना चाहा था। और जब वे तपस्या कर रही थी तो रावण ने उनके बालों को पकड़कर खिंचा और उनका बलात्कार करना चाहा। लेकिन उन्होंने अपने शरीर को जला दिया और रावण को श्राप दिया कि मैं ही तुम्हारे विनाश का कारण बनूंगी। और वही माता सीता के रूप में अवतरित हुयी थी और अंत में काम की अग्नि में जल रहे कामी रावण के विनाश का कारण बनी।
रावण ने जब अपने ही सौतेले भाई, कुबेर जी की पुत्रवधू, नलकूबर की धर्मपत्नी रम्भा का बलात्कार किया तभी नलकूबर ने भी उसे शाप दे दिया था कि भविष्य में यदि कभी किसी स्त्री की सहमति के बिना ऐसा करने का प्रयत्न किया तो तेरे मस्तक के सौ टुकड़े हो जाएंगे। यह न सोचें कि रावण बड़ा सदाचारी था बल्कि इसलिए सीताजी के साथ कुछ भी दुराचार नहीं किया क्यूँकि उसका मस्तक सौ टुकड़ों में टूट सकता था। यह तो उसकी विवशता थी। रावण एक बेहद चरित्रहीन, स्त्रियों का शत्रु था। स्त्रियों का अपहरण करने वाला, उन्हें अपमानित, और उनपर अत्याचार करने वाला दुष्ट था व अपने काम के वशीभूत होकर उसने सीताजी का न केवल स्पर्श किया था बल्कि अपहरण भी किया था।
जब रावण के चाटुकार मंत्रियों ने रावण को पूछा कि तुम तो बलशाली हो और सीताजी को तो आसानी अपने बस में कर सकते हो और इसमें देर क्यूँ लगा रहे हो? तब रावण ख़ुद ही स्वीकार किया था की उसे श्राप मिला है कि किसी स्त्री की सहमति के बग़ैर बलात्कार किया तो उसके सर के टुकड़े टुकड़े हो जाएँगे।
उसने अपनी बहू रम्भा का बलात्कार किया था दुनिया का सबसे बड़ा बलात्कारी यही असुर था। रामायण में जगह जगह मिल जाएगा कि इसने कितने बलात्कार किए हैं।। रावण दुनिया से देवता, असुर, यक्ष, गन्धर्वों की कन्याओं का अपहरण कर लाया था। रावण ने सीता जी से भेंट करने पर उनपर अत्यंत अश्लील बातें कही। और माता सीताजी को जबरदस्ती उठाकर लंका ले गया। रावण ने किसी स्त्री का स्पर्श नहीं किया यह केवल कलियुग के अज्ञानी लोगों का शुद्ध बकवास है।
माता सीताजी को उसने बार बार मानसिक प्रताड़ना देकर अपनी पटरानी बनाने के लिए दबाव बनाया था। भाइयों में बैर करके घर तोड़ने यानि सनातन धर्म की पारिवारिक ईकाई को बर्बाद करने का जनक भी यही रावण था। इसने अपने भाई कुबेर की सारी संपत्ति लूटी, ससुर को लताड़ा, पत्नियाँ तो उसके पैरों की जूती थी, बहू का बलात्कार किया, अपने जीजा की हत्या करके बहन को विधवा बनाने वाला आसुरी भाई, अपने सन्त स्वाभाव वाले भाई विभीषण को लात मारके भगाया, अपने पिता ऋषि से कुलद्रोह करके राक्षस बना, एक भी रिश्तों को इसने कलंकित करने से नहीं छोड़ा।
कुछ तथाकथित कलियुगी ब्राह्मण लोग उसे विद्वान ब्राह्मण बताते हैं। रावण ब्राह्मण नहीं था उसने स्वयं राक्षस धर्म अपनाया था। उसने मनुस्मृति में बताए सभी महापातक कार्य किए थे जिससे ब्राह्मणत्व का लेश भी खत्म हो जाता है।
कहाँ तक उसके कुकृत्यों का वर्णन करूँ? वेदों का आभिचारिक भाष्य, यज्ञ में तामसिक क्रियाओं का सूत्रण। सीताजी के हरण के समय उस उच्चकोटि के पाखण्डी राक्षस ने यति (भिक्षुक) का वेश धारण किया- "आवा निकट जती के बेषा।"
हार्दिक पीड़ा होती है जब तथाकथित संस्कृतज्ञ और सुलझे विचारों वाले लोग ऐसे फालतू के पोस्ट साझा करते हैं याउन्हें महत्त्व देते हैं। अपनी आगामी पीढी को "रामादिवत्प्रवर्तितव्यं न रावणादिवत् " सिखाना है या कुछ और? निर्णय आपको करना है।
रावण इतना दम्भी था कि अपने बल का प्रयोग करके उसने कैलाश पर्वत को हिला करके वहाँ पर तबाही मचाने की कोशिश किया था तब भगवान शंकरजी ने इस अभिमानी को पर्वत के नीचे दबा दिया था। और लम्बे समय तक ऐसे ही कैलाश पर्वत के नीचे दबा रहा फिर उसने शिव स्तुति के द्वारा शंकर की को प्रसन्न करके छुटकारा प्राप्त किया।
भगवान शंकर जी की सवारी, सीधे-साधे और भोले भाले नंदी जी को बंदर कहकर उनका उपहास करने वाला तथा नंदीजी से झगड़ा करके शाप लेने वाला कि “बंदर के द्वारा ही तुम्हारी तबाही होगी” रावण को आजकल के वर्णशंकरअपना आदर्श मानते है।
और तो और इस अभिमानी को अपने बल का इतना अहंकार था कि उसने भगवान रामजी के पूर्वज अयोध्या के राजा, अनारन्य को बिना कारण के ज़बरदस्ती युद्ध करना चाहा और युद्ध के लिए ज़बरदस्ती ललकार करके उनकी हत्या कर दिया था। उनकी इच्छा थी कि कोई उनके वंश में आए और रावण का विनाश करे और उसी कारण से भगवान राम जी उसी वंश में अवतरित हुए और रावण का विनाश किया।
ऐसे बलात्कारी दम्भी आततायी रावण के कुकर्मों का सिर्फ़ आसुरी स्वभाव वाले दम्भी और बलात्कारी ही गुणगान कर सकते है और उसे अपना आदर्श मान सकते है।
लेख को लिखने में प्रवीन कुमार प्रभु का विशेष आभार।
हरे कृष्णा
रामानन्द दास (Rajesh Kumar Pandey)
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