सनातन धर्म क्या है?

वेदास!
3 Jan 2020
सनातन का मतलब जिसका आदि और अंत ना हो! भगवान शाश्वत और संपूर्ण है और जीव अर्थात् आत्मा भी उनका अंश है इसीलिए ये भी शाश्वत है। अंश का काम क्या है? अपने पूर्णांश की सेवा करना। यह सेवा कैसे की जाती है? जैसे कि शरीर के अंग का काम पूर्ण शरीर की सेवा करना है। और जब तक वह अंग शरीर से जुडा है तो खुश भी है तथा यह शरीर से अलग होकर खुश नही रह सकता। हर एक जीव किसी ना किसी रूप में किसी ना किसी की सेवा कर रहा है क्यूँकि ये सेवा भाव जीव से नही निकला जा सकता है, और जीव के अंदर सेवा भाव शाश्वत है अर्थात् जीव का शाश्वत स्वभाव भगवान की सेवा करना है (जिवेर स्वरूप हय कृष्णेर नित्य दास)। भगवान है और जीव दोनो हाई शाश्वत हैं। और जीव द्वारा भगवान की ये सेवा भी हमेशा से चली आ रही है। ये सेवा हमेशा ही चलती रहेगी इसका न तो आदि था और न तो कोई अंत होगा क्यूँकि ईश्वर और जीव दोनो ही सनातन है। इसीलिए इनके बीच जो स्वामी और सेवक का सम्बंध है वही सनातन धर्म है।
इस भौतिक जगत में आकर जीव उस सेवा को भूलकर अपने इंद्रियों की सेवा में लग गया है। ये सेवा जीव में है इसे किसी भी क़ीमत पर जीव से निकला नही जा सकता है किंतु इस भौतिक जगत में जीव की अपने इस सम्बंध को भूल जाने से इस सेवा का रूप बदल गया है। हम सब किसी ना किसी रूप में किसी ना किसी की सेवा कर ही रहे है जैसे कि कोई पति रूप में तो कोई पत्नी के रूप में तो कोई पिता या पुत्र के रूप में तो कोई नौकर के रूप में तो कोई रोज़गार दाता के रूप एक दूसरे की सेवा कर रहा है। किंतु हमारा प्रथम कर्तव्य भगवान की सेवा करना है। इस बारे में श्रील प्रभुपाद जी कहते हैं कि “यदि हम भगवान की सेवा नही कर रहे है तो कुत्ते सेवा कर रहे हैं।” हमें इस भौतिक जगत में ही भगवान के साथ अपने खोए हुए सम्बंध (सुषुप्त प्रेम सम्बंध) को जागृत करना है।
कलियुग में ये सम्बंध भगवान के नाम के जप के द्वारा ही जग पाना सम्भव है तथा इस युग के लिए यह अत्यंत सरल, सुगम और सर्वोत्तम विधि है। भगवान श्रीहरी (श्रीकृष्ण) के नाम के जप की विधि द्वारा हम पूर्णरूपेन शुद्ध होकर जन्म, मृत्यु, ज़रा (बुढ़ापा) और व्याधि के चक्करों से मुक्त होकर हम अपने शाश्वत शरीर को प्राप्त कर अपने घर अर्थात भगवान के धाम को जा सकते है, जहाँ से फिर कभी वापस नहीं आएँगे। इसीलिए भगवान के नाम का जप करिए और ख़ुश रहिए।
“हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।”
“परम विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम” इस कलियुग में यह संकिर्तन आंदोलन (कृष्ण के पवित्र नाम का सामुहिक जाप) मानवता के लिए प्रमुख वरदान है।
हरे कृष्ण
रामानन्द दास (Rajesh Kumar Pandey)