श्रील लोकनाथ गोस्वामी पाद के तिरोभाव महोत्सव पर विशेष

vedashindi
Vijay!
8 Aug 2018

श्रीलोकनाथ गोस्वामी का जन्म श्रीअद्वैताचार्य जी के शिष्य श्री पद्मनाभ भट्टाचार्य एवं सीता देवी के पुत्र के रूप में बांग्लादेश के जैसोर के ग्राम में सं. १५४० में हुआ था।पिताजी से ही व्याकरण आदि का अध्ययन करके ग्रंथो के अध्ययन के लिये शांतिपुर निवासी श्री अद्वैताचार्य जी की पाठशाला में गए। श्री गौरांग महाप्रभु जी का अध्ययन भी वहीं चल रहा था अतः प्रथम मिलन वही हुआ। 
  
श्रीलोकनाथ गोस्वामी गृहस्थ आश्रम त्यागकर जब श्री चैतन्य महाप्रभु से मिले तो उन्होंने कहा कि मैं स्वयं भी संन्यास लेकर वृन्दावन जाने वाला हूँ । महाप्रभु से अनेक निर्देश लेकर लोकनाथ गोस्वामी भारी मन से वृन्दावन की ओर चले । वृन्दावन पहुँच कर लोकनाथ गोस्वामी को महाप्रभु से विरह सताने लगा तो वे उनसे मिलने निकल पड़े । उन्हें पता चला कि महाप्रभु संन्यास लेकर पुरी से दक्षिण भारत की यात्रा पर निकले हैं तो वे भी पीछे पीछे चल पड़े । जब वे वहां पहुंचे तो उन्हें पता लगा कि महाप्रभु वृन्दावन की ओर गए हैं, तब लोकनाथ गोस्वामी ने वृन्दावन का रुख किया । वृन्दावन पहुँच कर पता चला कि महाप्रभु प्रयाग चले गए हैं तब इन्होने भी प्रयाग की ओर प्रस्थान करने का मन बनाया । परन्तु महाप्रभु में स्वप्न में आकर उन्हें यूँ ही इधर उधर भटकने के लिए मना कर दिया और आज्ञा दी कि वे ब्रज की सीमा से बाहर न जाएँ।

जब आप व्रज-मण्डल के खदिर वन में आए, वहाँ छत्रवन के समीप उमराओ गाँव है, वहाँ पर श्रीकिशोरी कुण्ड है। आपको भगवद्-प्रेम के अद्भुत भाव हुए श्रीकिशोरी कुण्ड के दर्शन करके। कुछ दिन वहीं निर्जन स्थान पर भजन करते-करते अचानक आपके मन में इच्छा हुई कि आप श्रीराधा-कृष्ण जी के विग्रहों की सेवा करें। जैसे ही इच्छा हुई, तत्क्षण, भगवान स्वयं वहाँ आये, आपको विग्रह (मूर्ति) दिये व कहा कि ये 'राधा-विनोद' हैं। इतना कह कर भगवान अदृश्य हो गये।

आप विग्रहों को ऐसे अचानक आया देख कर हैरान रह गये। जब होश सम्भाला तो चिन्ता करने लगे कि इन विग्रहों को कौन दे गया है?तब श्रीराधा-विनोद जी के विग्रह हँसे व आप पर मधुर नज़र डालते हुये बोले - मैं इसी उमराओ गाँव के किशोरी कुण्ड के किनारे रहता हूँ। तुम्हारी व्याकुलता देखकर मैं स्वयं ही तुम्हारे पास आया हूँ -- मुझे और कौन लायेगा? अब मुझे भूख लगी है। शीघ्र भोजन खिलाओ।

यह सुनकर आप के दोनों नेत्रों से आँसु बहने लगे। तब आपने स्वयं खाना बनाकर, श्रीराधा-विनोद जी को परितृप्ति के साथ भोजन कराया व बाद में पुष्प शैया बनाकर उनको सुलाया। नये पत्तों द्वारा आपने ठाकुर को हवा की व मन लगाकर ठाकुर के चरणों की सेवा की। आपने मन और प्राण भगवान के चरणों में समर्पित कर दिये।

इनकी प्रतिज्ञा थी मैं कभी भी कुटिया एवं शिष्य नही बनाऊंगा। अतः ठाकुरजी को लता कुंजो एवं वृक्षो के नीचे ही विराजमान कर लाड लड़ाते।अंत में श्रीनरोत्तम दास ठाकुरजी की गुरु सेवा व निष्ठा देख अपना प्रण भुलाकर उनको अपने एकमात्र शिष्य रूप में अंगीकार किया।

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी अर्थात आज ही के दिन श्रील लोकनाथ गोस्वामी नित्य लीला में प्रविष्ट हो गए । नित्यलीला में आप श्रीमंजुला मंजरी हैं तथा प्रिया-प्रियतम के वस्त्रो को संभालकर रखना एवं उनको धारण करवाना आपकी निकुंज में प्रधान सेवा है।

श्रीवृन्दावन में श्रीराधा-गोकुलानन्द मन्दिर में आपका समाधि मन्दिर है। श्रीलोकनाथ गोस्वामी जी द्वारा सेवित श्रीराधा-विनोद जी के विग्रह भी श्रीगोकुलानन्द मन्दिर में सेवित हैं।

🙌🏼जय जय राधाविनोद राधाविनोद राधे, 
लोकनाथेर प्राणधन हे।

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