जय जय श्री तुलसी माता की आरती

पार्थ!
20 Mar 2019
नमो नम: तुलसी ! कृष्ण प्रेयसी !
राधाकृष्ण - सेवा पाब एइ अभिलाषी ॥
ये तोमार शरण लय , तार वाञ्छा पूर्ण हयब
कृपा करि कर तारे वृन्दावनवासी ।
मोर एई अभिलाष , बिलास - कुंजे दिओ वास ,
नयने हेरिब सदा युगलरूपराशि ॥
एइ निवेदन धर , सखीर अनुगत कर ,
सेवा - अधिकार दिये कर निज दासी ।
दीन कृष्णदासे कय , एइ येन मोर हय , ।
श्रीराधागोविन्द - प्रेमे सदा येन भासि ॥
- भगवान् श्रीकृष्ण की प्रियतमा हे तुलसी देवी ! मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूँ । मेरी एकमात्र इच्छा है कि मैं श्री श्री राधाकृष्ण की प्रेममयी सेवा प्राप्त कर सकूँ ।
- जो कोई भी आपकी शरण लेता है उसकी कामनाएँ पूर्ण होती हैं । उस पर आप अपनी कृपा करती हैं और उसे वृन्दावनवासी बना देती हैं ।
- मेरी यही अभिलाषा है कि आप मुझे भी वृन्दावन के कुंजों में निवास करने की अनुमति दें , जिससे मैं श्रीराधाकृष्ण की सुन्दर लीलाओं का सदैव दर्शन कर सकूँ ।
- आपके चरणों में मेरा यही निवेदन है कि मुझे किसी व्रजगोपी की अनुचरी बना दीजिए तथा सेवा का अधिकार देकर मुझे आपकी निज दासी बनने का अवसर दीजिए ।
- अति दीन कृष्णदास आपसे प्रार्थना करता है , ' मैं सदा सर्वदा श्री श्रीराधागोविन्द के प्रेम में डूबा रहूँ ' ।
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