कृष्ण पर मेरे विचार

वासुदेव:!
3 Sep 2018
कृष्ण पर कभी कभी मैं विचार करता हूँ कि कृष्ण आख़िर है कौन? कभी विचार आता है वृंदावन के बाँके बिहारी का तो कभी यशोदा के गिरधर का पर क्या वास्तविकता में कृष्ण की केवल ये ही सचाई है। सत्य तो ये है की जिस रूप में हमें उनको देखना चाहिए उस रूप में कभी हम उनको देखने की कोशिश ही नहीं करते। मैं अपने जीवन में बहुत से मंदिर घूमा पर किसी में भी महाभारत वाले कृष्ण को नहीं देखा। ना कोई मूर्ति जिसे देखकर मैं गर्व कर सकूँ कि हाँ आज हम कृष्ण की वास्तविकता को समझने का प्रयास कर रहे हैं। महाभारत का कृष्ण हमने अपनी संस्कृति से इस तरह से मिटा दिया है जैसे वो कभी था ही नहीं। गीता का सम्मान हर कोई करता पर अध्ययन कोई नहीं करना चाहता। गीता के दो श्लोकों में भगवान कृष्ण ने अपनी वास्तविकता बताई है ।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भव- ति भारत ।
अभ्युत्थान- मधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्- ॥४-७॥
परित्राणाय- साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्- ।
धर्मसंस्था- पनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥
अथार्त:
"जब जब भी धर्म का विनाश हुआ, अधर्म का उत्थान हुआ, तब तब मैंने खुद का सृजन किया, साधुओं के उद्धार और दुष्टों का संहार करने के लिए, धर्म की स्थापना के प्रयोजन से, मै हर युग में जन्म (आविर्भाव) लेता हूँ।"
ये प्रतिज्ञा आख़िर हम क्यूँ भूलते जा रहे हैं। कृष्ण की पूजा उनके हर रूप में की जानी चाहिए ताकि हमें उनकी हर वास्तविकता का ज्ञान हो सके। गीता का उपदेश कर्मयोग और ज्ञानयोग को जोड़कर भक्तियोग को ऊपर रखता है पर क्या हम रखते हैं? नहीं ! क्यूँकि अगर रखते तो हर जगह कृष्ण की गीता का उपदेश प्रधान होता। गीता हमें परम सत्य से अवगत करवाती है पर ये संसार केवल मिथ्या से! मैं तो यही मानता हूँ की महाभारत के कृष्ण वास्तविक है और इसका ज्ञान हर मनुष्य को होना चाहिए क्यूँकि गीता महाभारत के युद्ध के बीच में कही गयी थी ताकि हमें वास्तविकता का ज्ञान करवा सके। भगवान (कृष्ण) ने अर्जुन से हमेशा कर्तव्यों को पूरा करने का (युद्ध लड़ने का) आग्रह किया ताकि वो हमारे लिए एक सीख बन सके पर हमने उसे एक किताब तक ही सीमित रखा। विडंबना यह है कि सत्य कोई बताना नहीं चाहता है। मेरा तो यही विचार है कि गीता को उसके पन्नों से उठाकर मंदिर तक लाया जाये ताकि हमें हमारा सच्चा इतिहास पता चल सके और पतन ना हो। आख़िर में यही कहूँगा कि किसी को बुरा लगे फिर भी सत्य बोलो।
।। जय श्रीराम ।।
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