अध्याय एक
श्लोक
श्लोक
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः ।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ॥१७॥
काश्यः - काशी (वाराणसी) के राजा ने; च - तथा; परम-ईषु-आसः - महान धनुर्धर; शिखण्डी - शिखण्डी ने; च - भी; महा-रथः - हजारों से अकेले लड़ने वाले; धृष्टद्युम्नः - धृष्टद्युम्न (राजा द्रुपद के पुत्र) ने; विराटः - विराट (राजा जिसने पाण्डवों को उनके अज्ञात-वास के समय शरण दी) ने; च - भी; सात्यकिः - सात्यकि (युयुधान, श्रीकृष्ण के साथी) ने; च - तथा; अपराजितः - कभी न जीते जाने वाला, सदा विजयी ।
भावार्थ :महान धनुर्धर काशीराज, परम योद्धा शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यकि ।