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अध्याय एक
श्लोक

अर्जुन उवाच
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ।
यावदेतान्निरिक्षेऽहं योद्‌धुकामानवस्थितान् ॥२१॥

शब्दार्थ :

अर्जुनः उवाच - अर्जुन ने कहा; सेन्यो: - सेनाओं के; उभयोः - बीच में; रथम् - रथ को; स्थापय - कृप्या खड़ा करें; मे - मेरे; अच्युत - हे अच्युत; यावत् - जब तक; एतान् - इन सब; निरीक्षे - देख सकें; अहम् - मैं; योद्ध-कामान् - युद्ध की इच्छा रखने वालों को; अवस्थितान् - युद्धभूमि में एकत्र ।

भावार्थ :

अर्जुन ने कहा - हे अच्युत! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में ले चलें जिससे मैं यहाँ युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को देख सकूँ ।

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