अध्याय एक
श्लोक
श्लोक
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः ।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥२३॥
योत्स्यमानान् - युद्ध करने वालों को; अवेक्षे - देखें; अहम् - मैं; ये - जो; एते - वे; अत्र - यहाँ; समागताः - एकत्र; धार्तराष्ट्रस्य - धृतराष्ट्र के पुत्र की; दुर्बुद्धेः - दुर्बुद्धि; युद्धे - युद्ध में; प्रिय - मंगल, भला; चिकीर्षवः - चाहने वाले ।
भावार्थ :मुझे उन लोगों को देखने दीजिये जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र (दुर्योधन) को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आये हुए हैं ।