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अध्याय एक
श्लोक

तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् । 
कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ॥२७॥ 

शब्दार्थ :

तान् - उन सब को; समीक्ष्य - देखकर; सः - वह; कौन्तेयः - कुन्तीपुत्र; सर्वान् - सभी प्रकार के; बन्धून् - सम्बन्धियों को; अवस्थितान् - स्थित; कृपया - दयावश; परया - अत्यधिक; आविष्टः - अभिभूत; विषीदन् - शोक करता हुआ; इदम् - इस प्रकार; अब्रवीत् - बोला; 

भावार्थ :

जब कुन्तीपुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा सम्बन्धियों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इस प्रकार बोला ।

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