अध्याय एक
श्लोक
श्लोक
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ।
गाण्डीवं संसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते ॥२९॥
वेपथुः - शरीर का कम्पन; च - भी; शरीरे - शरीर में; मे - मेरे; रोम-हर्षः - रोमांच; च - भी; जायते - उत्पन्न हो रहा है; गाण्डीवम् - अर्जुन का धनुष, गाण्डीव; स्रंसते - छूट या सरक रहा है; हस्तात् - हाथ से; त्वक् - त्वचा; च - भी; एव - निश्चय ही; परिदह्यते - जल रही है ।
भावार्थ :मेरा सारा शरीर काँप रहा है , मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं , मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है ।