अध्याय एक
श्लोक
श्लोक
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः |
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव ॥३०॥
न - नहीं; च - भी; शक्नोमि - समर्थ हूँ; अवस्थातुम् - खड़े होने में; भ्रमति - भूलता हुआ; इव - सदृश; च - तथा; मे - मेरा; मनः - मन; निमित्तानि - कारण; च - भी; पश्यामि - देखता हूँ; विपरीतानि - बिलकुल उल्टा; केशव - हे केशी असुर के मारने वाले ( कृष्ण ) |
भावार्थ :मैं यहाँ अब और अधिक खड़ा रहने में असमर्थ हूँ । मैं अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सिर चकरा रहा है । | हे कृष्ण ! मुझे तो केवल अमंगल के कारण दिख रहे हैं ।