अध्याय एक
श्लोक
श्लोक
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम् |
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन ||३८||
कथम् - क्यों; न - नहीं; ज्ञेयम् - जानना चाहिए; अस्माभिः - हमारे द्वारा; पापात् - पापों से; अस्मात् - इन; निवर्तितुम् - बन्द करने के लिए; कुल-क्षय - वंश का नाश; कृतम् - हो जाने पर; दोषम् - अपराध; प्रपश्यद्भिः - देखने वालों के द्वारा; जनार्दन - हे कृष्ण !
भावार्थ :हे जनार्दन ! यद्यपि लोभ से अभिभूत चित्त वाले ये लोग अपने परिवार को मारने या अपने मित्रों से द्रोह करने में कोई दोष नहीं देखते किन्तु हम लोग, जो परिवार के विनष्ट करने में अपराध देख सकते हैं, ऐसे पापकर्मों में क्यों प्रवृत्त हों ?