अध्याय एक
श्लोक
श्लोक
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः ।
धर्म नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ||३९||
कुल-क्षये - कुल का नाश होने पर; प्रणश्यन्ति - विनष्ट हो जाती हैं; कुल-धर्माः - पारिवारिक परम्पराएँ; सनातनाः - शाश्वत; धर्म - धर्म; नष्टे - नष्ट होने पर; कुलम् - कुल को; कृत्स्नम् - सम्पूर्ण; अधर्म: - अधर्म; अभिभवति - बदल देता है; उत - कहा जाता है ।
भावार्थ :
कुल का नाश होने पर सनातन कुल - परम्परा नष्ट हो जाती है और इस तरह शेष कुल भी अधर्म में प्रवृत्त हो जाता है |