अध्याय एक
श्लोक
श्लोक
सञ्जय उवाच
एवमुक्तवार्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत् |
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः || ४६ ||
सञ्जयः उवाच - संजय ने कहा ; एवम् - इस प्रकार ; उक्त्वा - कहकर ; अर्जुनः - अर्जुन ; संख्ये - युद्धभूमि में ; रथ - रथ के ; उपस्थे - आसन पर ; उपाविशत् - पुनः बैठ गया ; विसृज्य - एक ओर रखकर ; स - शरम् - बाणों सहित ; चापम् - धनुष को ; शोक - शोक से ; संविग्न - संतप्त , उद्विग्न ; मानसः - मन के भीतर |
भावार्थ :संजय ने कहा - युद्धभूमि में इस प्रकार कह कर अर्जुन ने अपना धनुष तथा बाण एक ओर रख दिया । और शोकसंतप्त चित्त से रथ के आसन पर बैठ गया |