अध्याय दो
श्लोक
श्लोक
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः ।
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ॥१८॥
अन्त-वन्त - नाशवान; इमे - ये सब; देहाः - भौतिक शरीर; नित्यस्य - नित्य स्वरूप; उक्ताः - कहे जाते हैं; शरिरिण: - देहधारी जीव का; अनाशिनः - कभी नाश न होने वाला; अप्रमेयस्य - न मापा जा सकने योग्य; तस्मात् - अतः; युध्यस्व - युद्ध करो; भारत - हे भरतवंशी ।
भावार्थ :अविनाशी, अप्रमेय तथा शाश्र्वत जीव के भौतिक शरीर का अन्त अवश्यम्भावी है। अतः हे भारतवंशी ! युद्ध करो।