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अध्याय दो
श्लोक

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥२४॥

शब्दार्थ :

अच्छेद्य: - न टूटने वाला; अयम् - यह आत्मा; अदाह्यः - न जलाया जा सकने वाला; अयम् - यह आत्मा; अक्लेद्यः - अघुलनशील; अशोष्यः - न सुखाया जा सकने वाला; एव - निश्र्चय ही; च - तथा; नित्यः - शाश्र्वत; सर्व-गत: - सर्वव्यापी; स्थाणुः - अपरिवर्तनीय, अविकारी; अचल: - जड़; अयम् - यह आत्मा; सनातनः - सदैव एक सा ।

भावार्थ :

यह आत्मा अखंडित तथा अघुलनशील है । इसे न तो जलाया जा सकता है, न ही सुखाया जा सकता है । यह शाश्र्वत, सर्वव्यापी, अविकारी, स्थिर तथा सदैव एक सा रहने वाला है ।

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