अध्याय दो
श्लोक
श्लोक
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत ।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ॥२८॥
अव्यक्त-आदीनि - प्रारम्भ में अप्रकट; भूतानि - सारे प्राणी; व्यक्त - प्रकट; मध्यानि - मध्य में; भारत - हे भरतवंशी; अव्यक्त - अप्रकट; निधनानि - विनाश होने पर; एव - इस तरह से; तत्र - अतः; का - क्या; परिदेवना - शोक ।
भावार्थ :सारे जीव प्रारम्भ में अव्यक्त रहते हैं , मध्य अवस्था में व्यक्त होते हैं और विनष्ट होने पर पुनः अव्यक्त हो जाते हैं। अतः शोक करने की क्या आवश्यकता है ?