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अध्याय दो
श्लोक

क्लैब्य मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते ।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्तवोत्तिष्ठ परन्तप ॥३॥

शब्दार्थ :

क्लैव्यम् - नपुंसकता; मास्म - मत; गमः - प्राप्त हो; पार्थ - हे पृथापुत्र; न - कभी नहीं; एतत् - यह; त्वयि - तुमको; उपपद्यते - शोभा देता है; क्षुद्रम् - तुच्छ; हृदय - हृदय की; दौर्बल्यम् - दुर्बलता; त्यक्त्वा - त्याग कर; उत्तिष्ठ - खड़ा हो; परम्-तप - हे शत्रुओं का दमन करने वाले ।

भावार्थ :

हे पृथापुत्र ! इस हीन नपुंसकता को प्राप्त मत होओ । यह तुम्हें शोभा नहीं देती । हे शत्रुओं के दमनकर्ता ! हृदय की क्षुद्र दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिए खड़े होओ ।

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