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अध्याय दो
श्लोक

अवाच्यवादांश्र्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिताः । 
निन्दन्तस्तव सामर्थ्य ततो दुःखतरं नु किम् ॥३६॥

शब्दार्थ :

अवाच्य - कटु; वादान् - मिथ्या शब्द; च - भी; बहून् - अनेक; वदिष्यन्ति - कहेंगे; तव - तुम्हारे; अहिताः - शत्रु; निन्दन्त: - निन्दा करते हुए; तव - तुम्हारी; सामर्थ्यम् - सामर्थ्य को; तत: - अपेक्षा; दुःख-तरम् - अधिक दुखदायी; नु - निस्सन्देह; किम् - और क्या है?

भावार्थ :

तुम्हारे शत्रु अनेक प्रकार के कटु शब्दों से तुम्हारा वर्णन करेंगे और तुम्हारी सामर्थ्य का उपहास करेंगे । तुम्हारे लिए इससे दुखदायी और क्या हो सकता है?

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