अध्याय दो
श्लोक
श्लोक
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्ग जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् ।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्र्चयः ॥३७॥
हतः - मारा जा कर; वा - या तो; प्राप्स्यसि - प्राप्त करोगे; स्वर्गम् - स्वर्गलोक को; जित्वा - विजयी होकर; वा - अथवा; भोक्ष्यसे - भोगोगे; महीम् - पृथ्वी को; तस्मात् - अतः; उत्तिष्ठ - उठो; कौन्तेय - हे कुन्तीपुत्र; युद्धाय - लड़ने के लिए; कृत - दृढ; निश्र्चय - संकल्प से।
भावार्थ :हे कुन्तीपुत्र! तुम यदि युद्ध में मारे जाओगे तो स्वर्ग प्राप्त करोगे या यदि तुम जीत जाओगे तो पृथ्वी के साम्राज्य का भोग करोगे। अत: दृढ़ संकल्प करके खड़े होओ और युद्ध करो।