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अध्याय दो
श्लोक

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥३८॥

शब्दार्थ :

सुख - सुख; दुःखे - तथा दुख में; समे - समभाव से; कृत्वा - करके; लाभ-अलाभौ - लाभ तथा हानि दोनों; जय-अजयो - विजय तथा पराजय दोनों; ततः - तत्पश्चात; युद्धाय - युद्ध करने के लिए; यज्यस्व - लगो ( लड़ो ); न - कभी नहीं; एवम् - इस तरह; पापम् - पाप; अवाप्स्यसि - प्राप्त करोगे ।

भावार्थ :

तुम सुख या दुख , हानि या लाभ , विजय या पराजय का विचार किये बिना युद्ध के लिए युद्ध करो। ऐसा करने पर तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा।

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