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अध्याय दो
श्लोक

यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्र्चितः ।
वेदवादरता: पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥४२॥

शब्दार्थ :

याम् इमाम् - ये सब; पुष्पिताम् - दिखावटी; वाचम् - शब्द; प्रवदन्ति - कहते हैं; अविपश्र्चितः - अल्पज्ञ व्यक्ति; वेद-वाद-रता: - वेदों के अनुयायी; पार्थ - हे पार्थ; न - कभी नहीं; अन्यत् - अन्य कुछ; अस्ति - है; इति - इस प्रकार; वादिनः - बोलनेवाले।

भावार्थ :

अल्पज्ञानी मनुष्य वेदों के उन अलंकारिक शब्दों के प्रति अत्यधिक आसक्त रहते हैं, जो स्वर्ग की प्राप्ति, अच्छे जन्म, शक्ति इत्यादि के लिए विविध सकाम कर्म करने की संस्तुति करते हैं।

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