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अध्याय दो
श्लोक

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते । 
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥५०॥

शब्दार्थ :

बुद्धि-युक्त: - भक्ति में लगा रहने वाला; जहाति - मुक्त हो सकता है; इह - इस जीवन में; उभे - दोनों; सुकृत-दुष्कृते - अच्छे तथा बुरे फल; तस्मात् - अतः; योगाय - भक्ति के लिए; युज्यस्व - इस तरह लग जाओ; योग: - कृष्णभावनामृत; कर्मसु - समस्त कार्यों में; कौशलम् - कुशलता, कला।

भावार्थ :

भक्ति में संलग्न मनुष्य इस जीवन में ही अच्छे तथा बुरे कार्यों से अपने को मुक्त कर लेता है। अत: योग के लिए प्रयत्न करो क्योंकि सारा कार्य-कौशल यही है।

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