अध्याय दो
श्लोक
श्लोक
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः ।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥६१॥
तानि - उन इन्द्रियों को; सर्वाणि - समस्त; संयम्य - वश में करके; युक्तः - लगा हुआ; आसीत - स्थित होना; मत्-पर: - मुझमें; वशे - पूर्णतया वश में; हि - निश्र्चय ही; यस्य - जिसकी; इन्द्रियाणि - इन्द्रियाँ; तस्य - उसकी; प्रज्ञा - चेतना; प्रतिष्ठिता - स्थिर ।
भावार्थ :जो इन्द्रियों को पूर्णतया वश में रखते हुए इन्द्रिय-संयमन करता है और अपनी चेतना को मुझमें स्थिर कर देता है, वह मनुष्य स्थिरबुद्धि कहलाता है।