अध्याय दो
श्लोक
श्लोक
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥६९॥
या - जो; निशा - रात्रि है; सर्व - समस्त; भूतानाम् - जीवों की; तस्याम् - उसमें; जागर्ति - जागता रहता है; संयमी - आत्मसंयमी व्यक्ति; यस्याम् - जिसमें; जाग्रति - जागते हैं; भूतानि - सभी प्राणी; सा - वह; निशा - रात्रि; पश्यत: - आत्मनिरीक्षण करने वाले; मुने: - मुनि के लिए ।
भावार्थ :जो सब जीवों के लिए रात्रि है, वह आत्मसंयमी के जागने का समय है और जो समस्त जीवों के। जागने का समय है वह आत्मनिरीक्षक मुनि के लिए रात्रि है।