अध्याय दो
श्लोक
श्लोक
विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्र्चरति नि:स्पृहः ।
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति ॥७१॥
विहाय - छोड़कर; कामान् - इन्द्रियतृप्ति की भौतिक इच्छाएँ; यः - जो; सर्वान् - समस्त; पुमान् - पुरुषः; चरति - रहता है; नि:स्पहः - इच्छारहित; निर्मम: - ममतारहित; निरहङ्कार - अहंकारशून्य; स: - वह; शान्तिम् - पूर्ण शान्ति को; अधिगच्छति - प्राप्त होता है।
भावार्थ :जिस व्यक्ति ने इन्द्रियतृप्ति की समस्त इच्छाओं का परित्याग कर दिया है, जो इच्छाओं से रहित रहता है और जिसने सारी ममता त्याग दी है तथा अहंकार से रहित है, वही वास्तविक को शान्ति प्राप्त कर सकता है।