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अध्याय तीन
श्लोक

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः ।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ॥११॥

शब्दार्थ :

देवान् - देवताओं को; भावयता - प्रसन्न करके; अनेन - इस यज्ञ से ; ते - वे; देवा: - देवता; भावयन्तु - प्रसन्न करेंगे; व: - तुमको; परस्परम् - आपस में; भावयन्तः - एक दूसरे को प्रसन्न करते हुए; श्रेयः - वर, मंगल; परम् - परम; अवाप्स्यथ - तुम प्राप्त करोगे ।

भावार्थ :

यज्ञों के द्वारा प्रसन्न होकर देवता तुम्हें भी प्रसन्न करेंगे और इस तरह मनुष्यों तथा देवताओं के मध्य सहयोग से सबों को सम्पन्नता प्राप्त होगी ।

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