अध्याय तीन
श्लोक
श्लोक
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम् ।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ॥१५॥
कर्म - कर्म; ब्रह्म - वेदों से; उद्भवम् - उत्पन्न; विद्धि - जानो; ब्रह्म - वेद; अक्षर - परब्रह्म से; समुद्भवम् - साक्षात् प्रकट हुआ; तस्मात् - अतः; सर्व-गतम् - सर्वव्यापी; ब्रह्म - ब्रह्म; नित्यम् - शाश्र्वत रूप से; यज्ञे - यज्ञ में प्रतिष्ठितम् स्थिर ।
भावार्थ :वेदों में नियमित कर्मों का विधान है और ये साक्षात् श्रीभगवान् (परब्रह्म) से प्रकट हुए हैं । फलत: सर्वव्यापी ब्रह्म यज्ञकर्मों में सदा स्थित रहता है ।