अध्याय तीन
श्लोक
श्लोक
तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचार ।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुषः ॥१९॥
तस्मात् - अतः; असक्त: - आसक्तिरहित; सततम् - निरन्तर; कार्यम् - कर्तव्य के रूप में; कर्म - कार्य; समाचर - करो; असक्तः - अनासक्त; हि - निश्र्चय ही; आचरन् - करते हुए; कर्म - कार्य; परम् - परब्रह्म को; आप्नोति - प्राप्त करता है; पुरुष: - पुरुष, मनुष्य ।
भावार्थ :अतः कर्मफल में आसक्त हुए बिना मनुष्य को अपना कर्तव्य समझ कर निरन्तर कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि अनासक्त होकर कर्म करने से परब्रह्म (परम) की प्राप्ति होती है ।