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अध्याय तीन
श्लोक

व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे ।
तदेकं वद निश्र्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम् ॥२॥

शब्दार्थ :

व्यामिश्रेण - अनेकार्थक; इव - मानो; वाक्येन - शब्दों से; बुद्धिम् - बुद्धि; मोहयसि - मोह रहे हो; इव - मानो; मे - मेरी; तत् - अतः; एकम् - एकमात्र; वाद - कहिये; निश्र्चित्य - निश्र्चय करके; येन - जिससे; श्रेयः - वास्तविक लाभ; अहम् - मैं; आप्नुयाम् - पा सकूँ ।

भावार्थ :

आपके व्यामिश्रित (अनेकार्थक) उपदेशों से मेरी बुद्धि मोहित हो गई है। अतः कृपा करके निश्र्चयपूर्वक मुझे बतायें कि इनमें से मेरे लिए सर्वाधिक श्रेयस्कर क्या होगा ?

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