अध्याय तीन
श्लोक
श्लोक
यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः ।
मम वानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥२३॥
यदि - यदि; हि - निश्र्चय ही; अहम् - मैं; न - नहीं; वर्तेयम् - इस प्रकार व्यस्त रहूँ; जातु - कभी; कर्मणि - नियत कर्मों के सम्पादन में; अतन्द्रित: - सावधानी के साथ; मम - मेरा; वर्त्म - पथ; अनुवर्तन्ते - अनुगमन करेंगे; मनुष्या: - सारे मनुष्य; पार्थ - हे पृथापुत्र; सर्वशः - सभी प्रकार से ।
भावार्थ :क्योंकि यदि मैं नियत कर्मों को सावधानीपूर्वक न करूँ तो हे पार्थः यह निश्र्चित है कि सारे मनुष्य मेरे पथ का ही अनुगमन करेंगे ।