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अध्याय तीन
श्लोक

उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम् ।
संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः ॥२४॥

शब्दार्थ :

उत्सीदेयुः - नष्ट हो जाय; इमे - ये सब; लोका: - लोक; न - नहीं; कुर्याम् - करूँ; कर्म - नियत कार्य; चेत् - यदि; अहम् - मैं; संकरस्य - अवांछित संतति का; च - तथा; कर्ता - स्रष्टा; स्याम् - होऊँगा; उपहन्याम् - विनष्ट करूँगा; इमा: - इन सब; प्रजा: - जीवों को ।

भावार्थ :

यदि मैं नियतकर्म न करूँ तो ये सारे लोग नष्ट हो जायं तब मैं अवांछित जन समुदाय (वर्णसंकर) को उत्पन्न करने का कारण हो जाऊँगा और इस तरह सम्पूर्ण प्राणियों की शान्ति का विनाशक बनूँगा ।

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