अध्याय तीन
श्लोक
श्लोक
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः ।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥२८॥
तत्त्ववित् - परम सत्य को जानने वाला; तु - लेकिन; महाबाहो - हे विशाल भुजाओं वाले; गुण-कर्म - भौतिक प्रभाव के अन्तर्गत कर्म के; विभाग्यो: - भेद के; गुणा: - इन्द्रियाँ; गुणेषु - इन्द्रियतृप्ति में; वर्तन्ते - तत्पर रहती हैं; इति - इस प्रकार; मत्वा - मानकर; न - कभी नहीं; सज्जते - आसक्त होता है ।
भावार्थ :हे महाबाहो! भक्तिभावमय कर्म तथा सकाम कर्म के भेद को भलीभाँति जानते हुए जो परमसत्य को जानने वाला है, वह कभी भी अपने आपको इन्द्रियों में तथा इन्द्रियतृप्ति में नहीं लगाता ।