रजिस्टर वेदासहिंदी
वेदासहिंदी
लॉगिन
होम क्वोट्स बुक्स टॉप ब्लोग्स ब्लोग्स अबाउट कांटेक्ट ब्लॉग लिखे
  • होम≻
  • बुक्स≻
  • श्रीमद्भगवद्गीता≻
  • अध्याय तीन≻
  • श्लोक 37
अध्याय तीन
श्लोक

श्री भगवानुवाच 
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् ॥३७॥

शब्दार्थ :

श्री-भगवान् उवाच - श्रीभगवान् ने कहा; काम: - विषयवासना; एष: - यह; क्रोधः - क्रोध; एषः - यह; रजो गुण - रजोगुण से; समुद्भव: - उत्पन्न; महा-अशन: - सर्वभक्षी; महा-पाप्मा - महान पापी; विद्धि - जानो; एनम् - इसे; इह - इस संसार में; वैरिणम् - महान शत्रु ।

भावार्थ :

श्रीभगवान् ने कहा - हे अर्जुन ! इसका कारण रजोगुण के सम्पर्क से उत्पन्न काम है, जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है ।

होम क्वोट्स बुक्स टॉप ब्लोग्स ब्लोग्स
अबाउट । कांटेक्ट । ब्लॉग लिखे । साइटमैप



नियम एवं शर्तें । प्राइवेसी एंड पालिसी