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अध्याय तीन
श्लोक

धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च ।
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ॥३८॥

शब्दार्थ :

धूमेन - धुएँ से; आवियते - ढक जाती है; वहिनः - अग्नि; यथा - जिस प्रकार; आदर्श: - शीशा, दर्पण; मलेन - धूल से; च - भी; यथा - जिस प्रकार; उल्बेन - गर्भाशय द्वारा; आवृतः - ढका रहता है; गर्भ: - भ्रूण, गर्भ; तथा - उसी प्रकार; तेन - काम से; इदम् - यह; आवृतम् - ढका है ।

भावार्थ :

जिस प्रकार अग्नि धुएँ से, दर्पण धूल से अथवा भ्रूण गर्भाशय से आवृत रहता है , उसी प्रकार जीवात्मा इस काम की विभिन्न मात्राओं से आवृत रहता है ।

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